Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 90
________________ ओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए तिविहेणं पडितो वंदामि जिण चउम्योसं ॥ हिंदी पदार्थ-(तस्स) उस (केवलि ) श्री केवली (पण्णत्तस्स) भाषित (धम्मस्स) धर्मके विषय (अ-मुठिओमि) अभ्युत्थित [खड़ा] होता हूं ( आराहणाए ) आराधन करनेके वास्ते ( विरओमि ) निवृत्ति करता हूं (विराहणाए) विराधनासे (तिविहेणं) त्रिविध मन वचन काय करके (पडिकतो) पीछे हटता हूं और (वंदामि जिण चउव्वीस) मै चौवीस तीर्थंकरोंको वन्दना करता हू॥ भावार्थ-श्री केवलीभाषित धर्ममें उपस्थित होकर संयममें लगे हुए अतिचारोसे निवृत्ति करे, और चतुर्विंशति तीर्थंकर देवोंको वंदना करे। फिर (इच्छामि खमासमणो) के पाठसे दो वार गुरुदेवको वन्दना नमस्कार करे और यथाशक्ति पाच पदोको वंदना नमस्कार करे ॥ फिर निम्न लिखित पाठ पढे । अनंत चौवीसोते नमो, सिद्ध अनंता कोड़। केवल ज्ञानी थे वरसभी, वंदु वे कर जोड़ ॥१॥ दो कोड़ो केवलधरा, विहरमान जिन वीस । सहस्त्र युगल कोड़ी नमु, साधु वंदु निसदीस ॥ २॥ हिंदी पदार्थ-(अनंत चौवीसीते नमो ) अनत चतुर्विशति तीर्थकरोंको नमस्कार करता हू, (सिद्ध अनंता कोड़) और अनंत कोटि प्रमाण सिद्धोंको भी नमस्कार करता हूं (केवल ज्ञानी थे वरसभी) केवलज्ञानके धारक मुनि वा स्थविर पदवाले जो मुनि है उन सवोंको (वंदु वे कर जोड) दोनों हाथ जोड़कर वंदना नमस्कार करता हूं ॥ (दो कोड़ी केवलधरा ) जघन्य वर्तमानकालमें महाविदेह आदि क्षेत्रोंने दो कोटि प्रमाण केवल ज्ञानके धारी मुनि और (विहरमान जिन वीस) वर्तमान जवन्य बीस

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