Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 89
________________ एवं १८ पापस्थानक महेिलुं जे कोई पापस्थानक महारे जीवें मने वचनें कायायें करी सेव्यु होय सेवराव्यु होय सेवता प्रत्ये भलुं जाण्युं होय ते अनंता सिद्ध केवलीनी साखें मिच्छा मि दुक्कडं ॥ हिंदी पदार्य-( अठारे पापस्थानक ) अष्टादश पापस्थानकोंके भेद निम्न प्रकारसे हैं (प्राणानिपान ) जीवहिंसा (मृपावाद ) असत्य भापग करना (अदत्तादान) चौर्य कर्म (मेथुन) अब्रह्मचर्य (परिग्रह) धनादिकी आकांक्षा (क्रोध) रोप करना (मान) अहकार (माया) छल (लोभ) तृष्णाकी वृद्धि (राग) काम रागादि (द्वेष) प्रतिकूलता (कलह) क्लेपभाव (अभ्याख्यान) असत्य दोपारोपण करना (पैशुन्य) चुगली करना (परपरिवाद) अन्य आत्माओंका निंदा करनी (रति अरति) विषय विकारोंकी प्राप्तिमें हर्ष और अप्राप्तिमें शोक करना (मायामोसो) कपटसे मृषावाद बोलना (मिथ्या दर्शन शल्य) मिथ्या दशर्नका शल्य रखना (एव अठारे पापस्थानक) इस प्रकारसे अष्टादश जो पापस्थानकोंके भेद है सो यह (माहेलु जे कोई पापस्थानक महारे जीवे मनें वचने कायाये करी) मेसे कोई भी पापस्थानक मैंने तीन योगोंसे (सेव्या होय) सेवन किये हुए हो (सेवराव्या होय) अन्य जीवोंसे आसेवन करवाये हों, (सेवता प्रत्ये भलु जाण्यु होय) जो आसेवन करते है उन्होंकी अनुमोदना करी हो (ते अनंता सिद्ध केवलीनी साखें ) उन दोपोंसे अनत सिद्ध केवलियोंकी साक्षिसे (मिच्छा मि दुक्कड) मै पीछे हटता हू॥ भावार्थ-अष्टादश पापोंको तीन करण और तीनों योगोंसे परिहार करे जो पूर्वोक्त लिखे गए है । फिर (इच्छामि ठामि) का पाठ पढ़े जो पूर्व लिखा, गया है। फिर खडा होकर निम्न प्रकारसे पढ़े ॥ तस्स धम्मस्ल केवलि पण्णनस्स अभ्भुष्ठि

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