Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 93
________________ आवस्सहो इच्छाकारेण संदिसह- भगवन् देव. सि ज्ञान दर्शन चरित्नाचरित तप अतिचार प्रायच्छित विशोधनार्य करेमि काउस्तग्गं ॥ हिदी पदार्थ-(आवस्सही इच्छाकारेण सदिसह भगवन् ) हे भगवन् ! मेरी इच्छा है, अवश्य करणीय कार्यकी करनेके लिए, आप आज्ञा दीजिए (देवसि) दिन सम्बन्धि (ज्ञान)ज्ञान (दर्शन) सम्यक्त्व(चरित्ताचरित्त) देशवृतिमें (तप) तपमे (अतिचार) अतिचारोंके (प्रायच्छित) प्रायश्चित्तकी (विशोधनार्थ) विशुद्धिके वास्ते (करेमि) करता हू (काउस्सगं) कायोत्सर्गको ॥ भावार्थ-फिर अवश्य ही करने योग्य पंचम आवश्यकको भगवान्की आज्ञा लेकर ज्ञान दर्शन चरित्राचरित्रकी विशुद्धिके अर्थ कायोत्सर्ग (ध्यान) करे। फिर 'नवकारका' पाठ 'करोमे भंते सामाइय' का पाठ 'इच्छामि ठामि' का पाठ 'तस्सोतरी करणेणं' का पाठ, इनको पूर्ण पढ़कर ध्यान करे । देवसीम चार और राईसीमें दो लोगस्सका ध्यान करे । पक्षिप्रतिक्रमणमें द्वादश लोगस्सका ध्यान और चतुर्मासी प्रतिक्रमणमें २० लोगस्सका ध्यान तथा सम्वत्सरी प्रतिक्रमणमें ४० लोगस्सका ध्यान करे। यह सप्रदायिक मानना है, अपितु सूत्रमें तपकी चिंत्वना ही कथन की गई है, क्योंकि अतिचारोकी विशुद्धिं तपसे ही होती है। फिर नमोकार पढ़के ध्यान पारे और एक लोगस्सका पाठ पढके दो वार 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ पढे । इस प्रकार पाचमा आवश्यक पूर्ण होता है । फिर षष्टम पञ्चक्खाण आवश्यक करे। यदि गुरुनी हों तो उन्होंसे प्रत्याख्यान करा लेवे, नहीं तो यथाशक्ति तप आप ही ग्रहण कर लेवे ॥ -

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