Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 83
________________ भावार्थ-द्वादशवें व्रतमें यह अधिकार है, कि-श्रावक साधुको निर्दोष अन्नपानी देवे और जो उन्होंके लेनेयोग्य पदार्थ है, वे भी निर्दोष ही दिलवावें। फिर पांचों ही अतिचारोंको वर्जके उक्त व्रतको शुद्धतापूर्वक धारण करे ॥ फिर संलेखनाका पाठ पठन करे। अथ संलेखना विषय ॥ अपच्छिम मारणंतिय संलेहणा झूसणा आराहणा पोषधशाला पूंजी पूंजीने उच्चार पासवण भूमिका पडिलेही पडिलेहीने गमणागमणे पडिकमि पडिक्कमिने दर्भादिक संथारो संथरि संथरिने दर्भादिक संथारो दुरूहि दुरूहिने पूर्व तथा उत्तर दिशि पल्यंकादिक आसने बेसी बेसीने करयल सं. परिग्गहियं सिरसाव मत्थए अंजली तिकडु एवं वयासी नमोत्युणं अरिहंताणं भगवंताणं जावसंपनाणं एम अनंता सिद्धजीने नमस्कार करोने जयवंता वर्तमान तीर्थकरने नमस्कार करीने पोताना धम्माचार्यने नमस्कार करीने साधु प्रमुख चारे तीर्थ खमावीने सर्व जीव राशि खमावोने पूर्वे जे व्रत आदरयां छे तेना जे अतिचार दोष लाग्या होए ते सर्वने अलोइ पडिकमी निंदा निशल्य थईने सवं पाणाइवायं पञ्चक्रवामि सव्वं मुसावायं पञ्चक्खामि

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