Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 85
________________ सप्पओगे, जीविया संसप्पओगे, मरणा संसप्पओगे कामभोगा संसप्पओगे जो मे देवसि अइयारो कठ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ हिंदी पदार्थ-(अपच्छिम मारणंतिय) मृत्युके समीप आ जानेपर (सलेहणा) संलेखना करनी चाहिये जोकि (झूसणा) आत्माको काँसे मिन्न करनेवाली है, (आराहणा ) आराधना करके फिर (पोषधशाला) पौषधशाला (पूंजी पूंनीने) प्रमानन करके (उच्चार पासवण भूमिका) उच्चार [विष्टा] (पासवण) मूत्रकी भूमि (पडिलेही पडिलेहीने) प्रतिलेखन करके (गमणागमणे) फिर आने जानेसे जो विराधना होती है उससे (पडिक्कमिने) पीछे हटके (दर्भादिक संथारो सथरी संथरीने) दर्मादिका आसन बिछाकर (दर्भादिक सथारो दुरूही दुरुहिने) फिर दर्भादिक संथारोपरि आरुढ होकर (पूर्व तथा उत्तर दिशि) पूर्व तथा उत्तर दिशाओंमे (पल्यंकादिक) पर्यकादिक (आसने वेसीने) आसन पर बैठकर फिर (करयल) दोनों हाथ (सपरिग्गहिय) जोड कर (सिरसावत्तं) शिरसे आवर्तन करता हुआ (मत्थए अंजली तिकडु) मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर फिर ऐसे करके (एव वयासी) ऐसे कहे (नमोत्थुणं) नमस्कार हो (अरिहंताणं) श्री अरिहतोंको (भगवंताणं) भगवंतोंको (जावसंपत्ताणं) यावत् जो मुक्तिको प्राप्त हुए है (एम अनंता सिद्धजीने) इसी प्रकार अनंत सिद्धोंको (नमस्कार करीने ) नमस्कार करके (पछी पोताना ) फिर अपने (धर्माचार्यने) धर्माचार्यजीको (नमस्कार करीने) नमस्कार करके [ साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप ] चार तीर्थ खमावीने ( साधु प्रमुख ) चारों ही तीर्थोको क्षमावणा करके (पूर्वे जे व्रत आदरयां छे) पहेले जो व्रत ग्रहण किए हुये हैं (तेना ने अतिवार दोप लाम्या होए) उनमें जो अतिचार रूप दोप लगा हो (ते

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