Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 82
________________ कंबल [लोई प्रमुख ] ( पाय पुच्छणेणं) पादपोंछन अर्थात् पादोंकी रजादिके दूर करनेवाला वस्त्रखंड (पाडिहारिय) जो वस्तु देने योग्य होती है अर्थात् निसको विहरके साधु फिर दे सक्ता हो, जैसेकि-(पीढ़) चौकी (फलग) फलग [तख्तपोसादि] (सेज्जा) शय्या (सथारए) तृणादिका सस्तारक (ओसह) औषध (मेसज्जणं ) बहुतसी औषधियोंके संयोगसे जो वस्तु निष्पन्न हुई है, उसको भैषज कहते हैं. (पडिलामेमाणे) देता हुआ (विहरामि) विचरता हूं वा विचरूंगा (एहवी सद्दहणा) इस प्रकारसे श्रद्धान वा (परूपणा ) उपदेश करना (फरसनायें करी शुद्ध) वा स्पर्श करनेसे जो शुद्ध होता है (एहवा) ऐसे (वारमा) द्वादशवां ( अतिथिसंविभाग ) अतिथिसंविभाग ( व्रतना) व्रतके (पंच ) पाच (अइयारा) अतिचार है, जो (जाणियव्वा ) जानने योग्य तो हैं किन्तु ( न समायरियव्वा ) आचरणे योग्य नहीं है ( तंज्जहा ) तद्यथा (ते आलोऊ ) उनकी आलोचना करता हू ( सचित्त निक्खेवणिया) न देनेकी बुद्धिसे अचित्त निर्दोष वस्तुको सचित्त वस्तु पर रख दिया हो, जैसे दुग्धको सचित्त जलोपरि रख देना (सचित्त पिहणिया) इसी प्रकार अचित्त निर्दोष वस्तुपर सचित्त वस्तु रख दी हो, जैसे दुग्धोपरि सचित्त जल रख देना (कालाइकम्मे) जिन पदार्थों का समय अतिक्रम हो गया है मुनियोंको उनके देनेकी विज्ञप्ति की हो, तथा अकालमे जिस समय मुनि भिक्षाको नहीं जा सकते उस कालमें आहारके लिए प्रार्थना करनी (परोवएसे) न देनेकी बुद्धिसे अपनी वस्तु अन्यकी कह दी हो, तथा अपने हाथोंसे दान न देकर अन्यको उपदेश करना कि स्वामीनीको तू ही अन्न पानी दे दे क्योंकि दान देनेसे ही तात्पर्य है मेरे तेरेसे क्या (मच्छरियाए) मत्सरता [ ईर्ष्या ] से दान दिया हो, जैसेकि-अमुक पुरुष दानसे प्रसिद्ध हो रहा है, मैं भी वैसा हो जाऊं सो (जो मे देवसि अइयारो कउ) जो मैने दिनमे अतिचार किए हैं (तस्स मिच्छा मि दुक्कड) उनसे पीछे हटता हू, दुष्कृत मेरे अकरणीय है ॥

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