Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 81
________________ भावार्थ-एकादश पौषधोपवास व्रतमें चतुर् आहारका प्रत्याख्यान करके फिर ब्रह्मचर्यको धारण करे। फिर शरीरके शृंगारका भी परित्याग करे, और शस्त्रादिको भी पास न रक्खे, अष्ट प्रहर पर्यन्त द्विकरण तीन योगोंसे सावध कर्मका त्याग करके धर्म ध्यानमें समय व्यतीत करे, और पांचों ही अतिचारोंको दूर करके उक्त व्रतको सम्यग् पालन करे । अथ द्वादश व्रत विषय ॥ बारमुं अतिसिविभाग व्रत समणे निग्गंथे फासुयं एसणिज्नेणं असणं, पाणं, खाइम, साइमेणं, वत्थ, पडिग्गह, कंबल, पायपुच्छणेणं, पाडिदारिय, पोढ, फलग, सेज्जा संधारएणं ओसह भेसज्जेणं पडिलामेमाणे विहरामि एहवी सदहणा परूपणा फरसनायें करीशुद्ध एहवा बारमा अतिथिसंविभाग व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंज्जहा ते आलोउं सचित्त निक्खेवणिया सचिन पिहणिया कालाइकम्मे परोवएसे मच्छरियाए जो मे देवति अइयारो कओ तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ . हिंदी पदार्थ-(वारमुं) द्वादशवा (अतिथि) अतिथि अर्थात् न तिथि अतिथि जिसके आनेकी तिथि नियत न हो, उसका ही नाम अतिथि है अर्थात् साधु है (संविभाग व्रत) उसके साथ अपने आहारमेंसे सविभाग करना सोई अतिथि संविभाग व्रत है (समणे निग्गंथे) श्रमण निग्रंथको (फामुय) प्राशूक अचित्त (एसणिज्नेणं) एषणीय उद्गमादि दोपोसे रहित (असगं) अन्न (पाणं) पानी (खाइम) खाद्यम् पक्वान्नादि (साइमेण) खाद्यम् सुपारी आदि नथा (वत्थ) वस्त्र (पडिग्गह) पात्र (कंवल)

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