Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 74
________________ तद्यथा (अवज्झाणायरिय) अपध्यान करना जैसकि-अन्य आत्माओंके हानिकारक विचार करने (पमायायरिय) प्रमादाचरण करना अर्थात् धार्मिक कार्योंको परित्याग करके अन्य कार्योंमें परिश्रम करते रहना तथा घृतादिके वरतन अयत्नसे रखना (हिंसप्पयाणे) हिंसाकारी वस्तुओंका दान करना जैसे शस्त्रदान इत्यादि ( पावकम्मोवएसे) अन्य आत्माओंको विना ही प्रयोजन पापकर्मोंका उपदेश करना जिसके द्वारा वह पारकर्ममें लग जावें (एहवा ) ऐसे ( अनर्थदड ) अनर्थदडके (सेववाना ) आसेवन करनेका ' (पञ्चक्खाण ) प्रत्याख्यान (जावनीवाय) यावत् जीव पर्यन्त (दुविहं) द्विकरण और (तिविहेणं) तीन योगोंसे (न करेमि) स्वयं अनर्थदंडको सेवन न करूं (न कारवेमि) नाहीं अन्य जीवोंसे अनर्थदंड सेवन कराऊं (मणसा) मनसे (वयसा) पचनसे (कायसा) कायसे (एहवा) ऐसे (आठवां) अष्टम (अनर्थदड विरमग ब्राना ) अनर्थदड विरमण व्रतके (पंच) पान (अइयारा ) अतिचार ( जाणिया ) जानने योग्य तो है । किन्तु (न समायरियव्वा) आचरणे योग्य नहीं है, (तंज्नहा) तद्यया (ते ) उनकी (आलोउ) आलोचना करता हू (कदप्पे) कामको जागृत करनेवाली कथायें को हों, ( कुकुइए ) कुचेष्टा को हो नैसकि-भांडकी तरह विकृति भाव किया हो (मोहरिए) विचाररहित होकर वार्तालाप किया हो, तथा मुखारिवत् वर्ताव किया हो (सजुताहिगरणे) अधिकरणका सयोग किया हो अर्थात् विना परिमाण शस्त्रादिका सग्रह किया हो (उवभोग परिभोग अइरते ) उपभोग वस्तुओमैं वा परिभोग वस्तुओंमें अति मूछिन हो गया हों, तथा परिमाणसे अधिक संग्रह किया हो तब पाठ (उपभोग परिभोग अइरत्ते) ऐसे पढ़ा जाता है (जो मे देवसि अइयारो कड) जो मैंने दिनमें अतिचार किए हुए हैं (तस्स मिच्छा मि दुकई)', उन अनिचाररूप पापोंका फल निष्फल हो ।

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