Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 72
________________ . . . ७४ (न समायरियव्वा) आचरणे योग्य नहीं हैं जैसेकि-( तेजहा) तद्यथा (ते आलोउ) उनकी आलोचना करता हूं-(इंगालकम्में) अंगार कर्म [कोयला प्रमुखका व्यापार ] अग्नि सम्बन्धि व्यापार किया हो (वणकम्मे ) वन छेदन करना अर्थात् वन कटवाना ( साडीकम्मे ) शकटादि बनवाकर विक्रिय किए हों (भाडिकम्मे) शकटादि वा ऊंट, अश्व, वृषभ, खर, इत्यादि पशु भाड़े पर दिए हों ( फोडीकम्मे ) पृथिवीका स्फोटन कर्म वा पाषाणादिका स्फोटन कर्म किया हो (दंतवणिजे) दॉतोंका व्यापार किया. हो जैसेकि-हस्तीके दॉत, कस्तूरी, मृगचर्म प्रमुख (लक्खवणिजे ) लाखका वणन किया हो (रसवणिजे) रसोंका वणन किया हो जैसे-दुग्ध, तैलादि वा मदिरादि, (केसवणिजे) द्विपद चतुष्पद जीवोंका व्यापार किया हो (विसत्रणिने) विषका व्यापार किया हो (जंतपिलणिया कम्मे .) यंत्रपीड़न कर्म किया हो जैसे कि-वराट, कोल्हू ऊखल, मूसलादि कर्म (निल्लंच्छगिया कम्मे ) निलाछण कर्म जैसे वृषभादिको नपुसक करना ( दवग्गि दावगिया कम्मे ) वनको अग्नि लगाई हो तथा. दावाप्रिका उपदेश किया हो (सर) तड़ाग (दह) द्रह, कुड, (तलाय) तड़ाग चतुष्कोण प्रमुखके जलको (परिसोसणिया कम्मे) परिशोषण किया हो अर्थात् सुकाया हो (अप्सइ जग पोसणिया कम्मे) असती जनोंकी पोषगा की हो जैसे-आहेटक कमौके वास्ते श्वानादि वा श्येनादि [बाज़ ] वा मानारादि पोषण किए हों (जो मे देवसि अइयारो कउ) जो मेरा दिवस सम्बन्धि अतिचार किया हुआ है , (तस्स मिच्छा मि दुक्कड) उस अतिचार रूप पापका फल निष्फल हो । ___ भावार्थ सप्तम व्रत उपभोग परिभोग है, जिसका अर्थ है कि जो पदार्थ एक वार ग्रहण करनेमें आवें तथा बारम्बार ग्रहण करनेमें आवे उनकों विना परिमाण न आसेवन करे, जैसेकि स्नानादि और पंचदश कार्य जिनसे अधिक कोका वन्ध होता है, उनका सर्वथा ही परित्याग करें। कदाचित

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