Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 71
________________ ७३ - (भोगववाना पञ्चक्खाण) खानेका प्रत्याख्यान (जावनीवाय) यावजीव प येन्त (एगविहं) एक करण (तिविहेणं) तीनों योगोंसे जैसे कि-(नकरोमि) न करूं (मणसा) मन करके (वयसा) वचन करके (कायसा) काय करके (एहवा सातमा उवभोग परिभोग) ऐसे सप्तम उपभोग परिभोग (दुविहे) हि प्रकारसे (पण्णत्ते ) प्रतिपादन किया गया है (तंज्जहा) तद्यथा-जैसे कि-(भोयणाउय) एक भोजन सम्बन्धि (भोयणाउय समणोवासयाण) भोजन व्रत सम्बन्धि श्रमणोपासकोंको (पच) पाच (अइयारा) अतिचार ( जाणियव्वा ) जानने योग्य तो हैं किन्तु ( न समायरियव्वा) ग्रहण करने योग्य नहीं हैं (तज्जहा) तद्यथा (ते आलोऊ) उनकी आलोचना करता हूं (सचित्ताहारे) सचित्त वस्तुओका परित्याग होनेपर सचित्त वस्तुओंका आहार किया हो (सचित्त पडिवहाहारे) सचित्त प्रतिवद्ध पदाथोंका आहार किया हो जैसे, गूद तत्काल वृक्षोंसे उतार कर भक्षण करना तथा वनस्पतिके पत्रोपरि कंदोई [हलवाई ] को हटोपरि वस्तुओका खाना (अपोलि ओसहि भक्खणया) अपक्वोपधिका आहार किया हो तथा तत्कालकी अचित्त हुई वस्तुका आहार किया हो (दुप्पोले ओसहि भक्खणया) दुःपक्वोपधिका आहार किया हो जैसेकि होला प्रमुख, (तुच्छोसहि भक्खणया) जो पदार्थ खानेकी अपेक्षा गेरनेमें विशेष आवे उनका आहार किया हो जैसे संघाटक, इक्षु-खंड इत्यादि तथा तुच्छौषधि आहार उसका नाम भी है जिसके अतीव भक्षणसे भी तृप्ति न होवे जैसें खसख़ासादि (जो मे) जो मैं ने (देवसि) दिन सम्बन्धि (अइयारो) अतिचार ( कउ ) किए हुए हैं ( तस्स ) उसका (मिच्छा मि दुक्कड) जो अतिचाररूप पाप हैं वह निष्फल हो॥ (तथणं जे ते) उनमेंसे जो (कम्मउणं) कौ सम्बन्धि (समजोवासयाणं) श्रमणोपासकोंको दोप लगते है वे निम्न प्रकारसे हैं (पन्नरस्स कम्मादाणाई) पचदश कर्मादान जो .कर्म आनेके पंचदश मार्ग है वही अतिचार हैं किन्तु श्रावकोंको ( जाणियचा) जानने योग्य तो हैं परंतु १०,

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