Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 35
________________ लगा हो जैसकि-दिग् व्रत, उपभोग परिभोग विरमण व्रत, अनर्था दंड परित्याग व्रत, (चउण्हं सिक्खावयाण) चार शिक्षाव्रतों में अतिचार लगा हो जैसेकि-सामायिक व्रत, देशावकाशिक व्रत, पौषधोपवास व्रत, अतिथि संविभाग वन (वारस्स विहस्स) द्वादश प्रकारके (साव्वग धम्मस्स) श्रावक धर्मको ( ज खडियं) जो मैंने खंडित किया है (जं विराहियं) जो मैने नियमादि सर्व प्रकारसे विराधित किए है ( तस्स ) वह अतिचारादि पाप (मिच्छा मि) निष्फल हो जो (दुक्कडं) दुःकृत पाप हैं तथा इनसे मै पीछे हटता हूं ॥ भावार्थ-उक्त सूत्रमें द्वादश व्रतोंके अनिचारोंकी आलोचना है, फिर मन वचन कायको वशमें करना चार कषायोंका परित्याग करना श्रावक वृत्तिसे विरुद्ध न होना अपितु अकरणीय कार्य न करने सम्यग् दर्शनको कलंक्ति न करना इस प्रकारसे वर्णन किया गया है ॥ (फिर तस्सोत्तरीका पाठ पठन करके कायोत्सर्ग करे जिसमें १४ ज्ञानके अतिचार ५ सम्यक्त्वके ६० द्वादश व्रतोंके १५ कर्मादानके ५ संलेखनाके इस प्रकारसे ९९ प्रकारके आतिचारोंका ध्यान करे, खडा होकर कायोत्सर्ग करनेकी ही रीति है, यदि कारण हो तो बैठके ही कर लेवे) चतुर्दश प्रकारके ज्ञानानिचार निम्न प्रकारसे हैं आगमे तिविहे पणते तंजहा सुत्तागमे अत्या. गमे तदुभयागमे एहवा श्रुत ज्ञानके विषय जे कोई अतिचार लागा होय ते आलोउं जंवाइद्धं १ वच्चामे. लिय २ हीणक्खरं ३ अञ्चक्खरं ४ पयहीणं ५ विणयहीणं ६ जोगहीणं ७ घोलहीणं ८ सुदिन्नं ९ दुछु. पडिच्छियं १० अकाले कउ सज्झाओ ११ काले न कर सज्झाओ १२ असज्झाइयं १३ सज्झाइय नसल्झायं

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