Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar
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ते आलोउं इत्तरिय परिग्गहियागमणे अपरिग्गहिः . यागमणे अणंगकोडा परविवाह करणे काम भोगेसु लिप्वाभिलासा जो में देवसि अइयार कर तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ४ ॥
हिदा पदाध-*(गोधु अगुव्रत थूलाउ मेहु गाउ वेरमणं ) चतुर्थ . अनुवत स्थूल मेथुनले निवृत्ति करना हू कि-(सदारा संतोसिए) स्वस्त्रीपर ही सतोष धारण करना ( अवत) अशप (महुणर्नु पञ्चक्खाण). मयुन आयेवनका प्रत्याख्यान (ए पुरुषने) यह नियम तो पुरुषोंका है ( अने स्त्रीने) परतु स्त्रियोंको निम्न प्रकारले कहना चाहिये (सभार संतोसिए ( स्वभार ऊपर ही संतोष करना ) अवसेस मेहुणर्नु पञ्चक्खाण ( स्वभ"के विना अन्यसे सर्वथा मैथुन सेवनेका प्रत्याख्यान ) अने ने स्त्री पुरुपने मूलथकीज कायाए करी मैथुन सेववार्नु पञ्चक्खाण होय (यदि स्त्री और पुरुषको प्रथमसे ही काय करक मैथुन सेवनेका प्रत्याख्यान होवे तो (तेहने देवता मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धि) उनको देव, मनुष्य, ति
* चतुर्थ व्रत धारण करनेका पाठ:
अहन्नं भत्ते तुम्हाणं समीवे उरालिय वेउब्विय थूलंग 'मेहुणं पञ्चक्खामि इमं बंभचेरवयं उवसं पवज्जामि तथदिव्वं दुविहं तिविहेण तेरिच्छं एगविहं तिविहेणं मणुयं एगविहं तिविहेणं आहागहिय भंगहिय मंगएणं तस्स मैत्त पडिकमामि निंदामि गरिहामि तज्जहा दव्वउ, खिनउ,कालउ, भावउ, तथदव्वउणं इमं वंभवयं उवसं पवज्जामि खित्तउणं इत्थता । अन्नत्यवा कालउण जावज्जावाए भावउणं जाव गहाइणा न गिण्हेजामि नावच्छलेणं न छलिज्जामि, जाव सन्निवाएणं नाभिभविज्जामि नाव अन्नणवा केणयरोयायं केण न परिभविज्नामि ताव इमं वंभचेरवयं अरिहंत सक्खियं देव सक्खियं अप्पसक्खियं अणुसरामि ।। ,

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