Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 66
________________ ૬૮ द्विकरण और (तिविणं ) तीन योगसे करता हूं जैसे कि - ( न करेमि ) आसेवन न करूं और ( न कारवेमि ) आसेवन न कराऊं (नासा) मन करके (वयसा ) वचन करके (कायसा) काय करके (एहवा) ऐसे (छठ्ठा दिशि बना ) पष्ट दिननके (पंच अयारा) पांच अतिचार ( जाणिचवा) जानने योग्य हैं किन्तु ( न समायरियव्वा ) आचरणे योग्य नहीं हैं (तंजा) तद्यथा (ने आलोउं) उनकी आलोचना करना हूं, जैसे कि( उ दिमिप्पमाणाइक्कमे ) ऊंची दिशाका परिमाण उल्लंघन किया हो ( अहो दिन प्पमाणाइक मे ) नीची दिशाका परिमाण अतिक्रम किया हो (निरियदिसि पमाणाइक्कमे ) तिर्यगू दिशाकां परिमाण अतिक्रम किया हो ( खित्त वुद्धि) क्षेत्रकी वृद्धि की हो जैसे किं - कल्पना करो कि किसी व्यक्तिने चारों ओर ५०० पांचसो कोशका परिमाण किया हुआ है, फिर उसने विचारा कि पूर्व दिशामें तो विशेष कार्य रहता है अपितु दक्षिण 1 दिशामें कुछ कॉम नहीं पड़ता. इस लिये परिमाणसे अधिक पूर्वमें कर लं और दक्षिण दिशामें स्वल्पं कर दूं इत्यादि कार्य किया हो ( सयंतरण्डाय ) संदेह होने पर फिर भी आगे ही गमण किया हो अर्थात् जैसे सौ योजन तक जानेका परिमाण किया हुआ है, और मार्गमें जाने २ अनुमानसे ज्ञान किया कि, स्यात् है यथा प्रमिन तो आ गया हूंगा ऐसा संदेह होने पर भी आगे जाना यह नियममें दोष है । ( जो मे देवसि अइयारों कर ) जो - ~ मेरा दिन सम्बन्धि अतिचार रूप पाप है ( नस्त मिच्छामि दुक्कड ) वे निष्फल हो और उस अनिचार रूप पापले में पीछे हटता हूँ ॥ भावार्थ-पष्टम दिग्ननमें पट् दिशाओंका परिमाण किया जाता है जैसे कि- पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उर्व, अवो । परिमाणसे बाहिर स्यानाने पांच आव (हिंसा, असत्य, अदत्त, अब्रह्मचर्य, परिग्रह) इनके सेवन करनेका किरण और तीन योगसे प्रत्याख्यान करे, फिर पांच ही अनारोको वर्ज, इम प्रकार पष्टम बनकी आलोचना करे। फिर सप्तम ननकी आलोचना करे Cred

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