Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 60
________________ ६१ अथ चतुर्थ अनुव्रत विषय ॥ * चौथं अणुव्रत लाउ मेहुणाउ वेरमणं सदारा संतोसिए अवसेसं मेहुण सेववाना पञ्चक्खाण ए पुरुषने अने स्त्रीने सभर्तार संतोसिए अवलेस मेहुनुं पञ्चकखाण अने जे स्त्री पुरुषने मूलथकीज काया करी मेहुण सेववानुं पञ्चक्खाण होय तेहने देवता मनुष्य तिर्यंच सम्बन्धि मेहुणनुं पञ्चक्खाण जावजीवाय देवता देवी सम्बन्धि दुविहेणं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा मनुय तिर्यच सम्बन्धि एगविहं एगविदेणं न करेमि कायसा एहवा चौथा स्थूल मेहुण विरमण व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तंज्जहा * चतुर्थ व्रतधारी श्रावकों को इस प्रकारसे पाठ पठन करना चाहियेजैसे कि - ( चौधा अणुव्रत थूलाउ मेहुणाउ वेरमण सदारा संतोसिए भवसेस मेहुण पचक्खाण ) इस प्रकारसे तो श्रावक पढे, और श्राविकायें निम्न प्रकारसे पढे - ( चौथु अणुव्रत धूलाउ मेहुणा वेग्मण सभर्त्तार संतोसिए अवसेस मेहुणनु पच्चक्खाण ) यदि खो पुरुषको सर्वथा ही कायकरके मैथुन आसेवनका प्रत्याख्यान हो तिनको निम्न प्रकारसे पाठ पढना चाहिये । चौधु अणुव्रत थूलाउ मेहुणा वेरमण देवता देवी सम्बन्धि दुविह तिषिहेण इत्यादि मनुष्य तियैच सम्बन्धि एगविह एगविण न करोमि कायसा इत्यादि तथा श्री उपासक दशाङ्ग सूत्रमें महाशप्तकजीने नन्नत्य रेवतीपमुखा तेरस्स दाराण अवसेस मेहुणा वेरमणं इत्यादि उक्त सूत्रसे सिद्ध होता है जितनी स्त्रियोंका आगार रखा हो उतने प्रमाणसे उपरान्त मैथुन सेवन प्रत्याख्यान करे, प्रतिक्रमण करनेवालोंको योग्य है कि वे अपने २ यथेष्ट इस पाठको पढे |

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