Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 58
________________ ५९ कायसा एहवा तीजा थूल अदत्तादाण विरमण व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं - ज्जदा ते आलोउं तेणाहडे १ तक्करप्पउग्गे २ विरुद्ध रज्जाईक्कम्मे ३ कूड़ तोले कूड़ माणे ४ तप्पडिरूवग ववहारे ५ जो मे देवसि अइयारो कउ तस्त मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ३ ॥ हिन्दी पदार्थ - (तीजा) तृतीय ( अणुव्रत ) अनुव्रत ( धुलाउ) स्थूल ( अदत्तादाणाउ वेरमण ) अदत्तादानसे निवृत्ति करना हू ( खातर खणी) किसीके घरमे संधि करी हो [ भित्ति आदिका तोडना ] ( गाठड़ी छोड़ी होय) गांठ कतरी हो ( तालापाडे कुची ) अन्यके तालाओंको अन्य कुनिया लगाई हों (वाट पाड़ी) मार्ग [पथ ] में लूटना (पडा वस्तु घणीयाती जाणी) किसीकी महार्थ वस्तु जानकर कि इसका अमुक धनी है वा देखकर उठा ली हो ( इत्यादि मोटका अदत्तादाण ) इत्यादि स्थूल अदत्तादानका प्रत्याख्यान करता हूं किन्तु ( सगा सम्बन्धि ) वजन सम्बन्धि वस्तु उठाकर लेनेका त्याग नहीं है, यदि उनको किसी प्रकारका भ्रम न हो, तथा - ( व्यापार सम्बन्धि ) व्यापार सम्बन्धि जैसेकि - आदर्शके नमूने के वास्ते कोई वस्तु उठाई जाती है ( तथा निर्धनी वस्तु ) तथा जिस वस्तुका खोज करने पर भी स्वामी सिद्ध न हो ( ते उपरान्त मोटका अदत्तादाण ) इनके विना स्थूल अदत्तदानके ( लेवाना पच्चक्खाण ) लेनेका प्रत्याख्यान ( जावजीवाय) आयु पर्य्यन्त ( दुविह) द्विकरण और ( तिविहेणं ) त्रियोगसे जैसे कि ( न करेमि ) न करू ( न कारवेमि) और नाहीं चोरी कर - नेका अन्यको उपदेश देकर उनसे चोरी कराऊ ( मणसा ) मन करके ( वयसा ) वचन करके ( कायसा ) काय करके ( एहवा तीजा थूल अदत्तादाण विरमण व्रतना ) ऐसे तृतीय स्थूल अदत्तादान निवृत्तिरूप व्रत 4

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