Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 40
________________ ३ एक ओरसे द्वितीय ओर क्षेत्रकी वृद्धि की हो जैसेकि - दक्षिणकी ओर क्षेत्र अल्प करके पूर्वकी ओर क्षेत्रकी वृद्धि करना ४ तथा मार्ग में चलते हुए यदि संशय पड़ गया हो कि स्यात् मैं परिमाणयुक्त मार्ग आ गया हूँगा यदि संशय होनेपर फिर भी आगे ही गमन किया हो ९ सो इस प्रकारसे यदि कोई भी अतिचार मुज्झे लगा हो तो मै उन दोषोंसे पीछे हटता हूं ॥ सातमा उवभोग परिभोग परिमाण व्रतने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं पञ्चकखाण उपरांत सचित्तका आहार करया होय १ सचित्त प विद्धका आहार कस्या होय २ अपक्कना आहार करचा होय ३ दुपक्कना आहार करचा होय 8 तुच्छौषधीका आहार करया होय ५ जो मे देवसि अइयार कओ तस्त मिच्छामि दुक्कडं ॥ पनरा कर्मादानके विषय जे कोई अतिचार लागो होय तो आलोऊं इंगालकम्मे १ वणकम्मे २ साडीकम्मे ३ भाडो कम्मे ४ फोडीकम्मे ५ दंतवणिजे ६ लक्खवणिज्ने ७ रसवणिज्जे ८ केसवणिज्जे ९ वितवणिज्जे १० जंतपीलणियाकम्मे ११ निलंच्छणियांकम्मे १२ दवग्गि दावणियाकम्मे १३ सरदह तलाव सोसणिया कम्मे १४ असइ जणपोसणिया कमे १५ जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥

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