Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ ४७ (जावणिज्जाए) जिस करके कालक्षेप होता है ऐसी शक्ति करके तथा जन्म समयके बालकवत् जिसके दोनों हाथोंकी दोनों मुष्टिया आंखों पर होती है उसकी नाई (निसीहियाए ) जिस शरीरका मुख्य कत्तव्य प्राणातिपातके निषेधका है ऐसे शरीर करके आपको (वदिउं) वदना करनेकी (इच्छामि ) इच्छा करता हू (मिउग्गह) स्व देह प्रमाण प्रमाण की हुई भूमिकामें प्रवेश करनेकी ( मे) मुझेको (अणुनाणह) आज्ञा दीजिए । इस प्रकारसे आज्ञा लेकर अवग्रहमें प्रवेश करे (निसीहि ) गुरुदेवको वंदना विना निसने अन्य क्रिया रूप व्यापारका निषेध किया है, फिर मुखसे ऐसे कहे कि (अहोकायं) हे क्षमा श्रमण आपके चरण कमलोंको (काय) हाथ करके (संफासं) स्पर्श करता हूं। इस प्रकार आज्ञा लेकर चरण कमलोंको स्पर्श करके ऐसे कहे कि (किलामो) यदि आपके शरीरको मैंने कोई पीडा दी हो (भे) हे भगवन् आप (खमणिजो) क्षमा करनेके योग्य है इस लिए क्षमा कीजिए क्योंकि-(बहु सुभेण)वहुत ही शुभक्रियाओ करके (भे) आपका (दिवसो) दिवप्त [दिन] (वइकतो) अतिक्रान्त हुआ है और आप (अप्पकिलंत्ताण) अल्प वेदनावाले है-शारीरिक मानसिक वेदनासे रहित है यदि शारीरिक वेदना आपको उत्पन्न होती है तो आप उसमें आत और रौद्र ध्यान नहीं करते है । हे करुणासमुद्र ( जत्ता) तप नियम सयम स्वाध्याय रूप यात्रा (भे) आपमे सतत विद्यमान है, (च) और (जवणिज्जं भे) इन्द्रिय नोइद्रियके उपशम करनेसे आपका शरीर परम सुन्दर और शान्तिरूप हो गया है, (खमासमणो) हे क्षमा श्रमण (देवसियं) दिन सम्बन्धि (वइकम्म) व्यतिक्रम हुआ मेरा किया हुआ जो अपराध उसकी मैं (खाममि) आपसे क्षमा मागता हू-आप दोषको क्षमा करनेके योग्य है इसलिये क्षमा कीजिए, और (आवसिआए) अवश्य करणीय प्रतिलेखनादि क्रियाओंके करनेसे यदि मुझको अतिचार लग गया हो तो मै उस अतिचार रूप दोषसे ( पडिकमामि ) पीछे हटता हूं

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101