Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

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Page 22
________________ स्तिएणं खासिएणं छोएणं जंभाइएणं उड्डएणं वायनिसग्गेणं भमलिए पित्तमुच्छाए सुहुमेहिं अंग संचालेहिं सुहुमहिं खेल संचालेहिं सुहुमेहि दिछि संचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज मे काउसग्गं जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमोकारेणं न पारेमि ताव कायं ठाणेणं मोणेणं ज्झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥ ३॥ हिंदी पदार्थ-(तस्स) पुनः आत्माकी शुद्धि अर्थे (उत्तरी करण) प्रधान जो कृत है उसको उत्तरीकरण कहते हैं, फिर ( पायच्छित्त करणेण) पापोके दूर करनेके वास्ते तग (विसोहि करणेण ) आत्माको विशुद्ध करनेके लिए पुनः (विसल्ली करणेणं )शल्योंके दूर करने वास्ते और ( पावाण ) पापकोंके (निग्घायणाय ) नाश करनेके वास्ते (मि) एक स्थानोपरि (काउसण) पारकोंके दूर करनेके वास्ते कायोत्सर्ग करता , किन्तु ( अन्नत्थ) इतना विशेष जो आगे कहे जाते है इनके विना कायाको हिलाऊगा नहीं अपितु यह भो आगार स्ववशके नहीं है जैसेकि-(उसस्सिएणं ) ऊचे श्वासके आने पर अथवा (निसस्सिएण) नीच श्वासके होने पर वा (खासिरणं) खासीके होने पर, इसी प्रकार (छीएण) छीक (जंभाइएण) जभाई [अवासी] (उड्डएणं) डकार (वायनिसग्गेण ) अधो वायुके निकलने पर (भमलिए ) चक्रके आने पर (पित्तमुच्छाए) पित्तके उच्छलने पर (सुहुमेहिं ) सूक्ष्म (अंग सचालेहिं) अंगके सचालन होनेपर (सुहुमेहिं ) सूक्ष्म (खेल संचालोह) श्लेष्मणके सचालन होनेपर (सुहुमेह) सूक्ष्म (दिष्टि सचालहिं) दृष्टिके चलने पर (एवमाइएहिं) इत्यादि अन्य कई आगारों [प्रतिज्ञाओं] करके यदि मेरा शरीर ध्यानावस्थामें कपायमान हो जावे तो मेरा ध्यान (अपग्गो) भग न होगा (अविराहिओ) विराधित न होगा

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