Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Lala Munshiram Jiledar

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ यथाशक्ति अनुकरण भी करे क्योंकि सामायिकमें मुख्यतया समाधिकी ही आवश्यकता है। जो प्रार्थनाके पाठ है वह भी इस प्रकारसे है जो शीघ्र ही आत्मवाधको दिखलाते है-जैसे कि (जिन) ध्यान करते २ वर्ण विपर्यय करनेसे (निज ) ध्यान हो जाता है, इसी प्रकार सामायिकमें भी प्रार्थना आत्मसमाधिको ही पुष्ट करती है अर्थात् प्रार्थना इस प्रकारसे समाधि देती है जैसे चिंतामणि रत्न इच्छककी इच्छा पूरी कर देता है । सो इस सूत्रका ध्यान करके फिर नमो अरिहंताणं ऐसे पाठ पदके फिर वही पाठ एक वार ऊचे स्वरसे पढे ॥ फिर बैठकर दक्षिण जानु भूमिका पर रखकर वामा जानु ऊचा करके पुनः हाथ जोडकर निम्नलिखित सूत्र पढ़े ॥ अथ मूल सूत्रम् ॥ __ नमोत्युणं अरिहंताणं भगवंताणं आइगराणं तित्ययराणं सयंसंबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं पुरिससोहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिमवरगंधहत्योण लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपजोयगराणं अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणद. याणं जीवदयाणं बोहिदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसि. याण धम्मनायगाणं धम्मसारहोणं धम्मवरचाउरंत चकवट्टीणं दीवोत्ताणं सरणगइपइठाणं अप्पडिहयवरनाणं दसणधराणं विअदृछउमाणं जिणाणं जावयाणं तिनाणं तारयाण बुद्धाणं बोहियाणं मुनाणं मोयगाणं सव्वण्णुणं सव्वदरिसिणं सिव मयल मरुय मणंत मक्खय मव्वाबाह मपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जियभयाणं ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101