Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 7
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक जल्द से नीकाल दे । लेकिन पलभर भी मुनि शल्यवाला न रहे । सूत्र-३१-३२ जिस तरह साँप का बच्चा छोटा हो, सरसप प्रमाण केवल अग्नि थोड़ा हो और जो चिपक जाए तो भी विनाश करता है । उसका स्पर्श होने के बाद वियोग नहीं कर सकते । उसी तरह अल्प या अल्पतर पाप-शल्य उद्धरेल न हो तो काफी संताप देनेवाले और क्रोड भव की परम्परा बढानेवाले होते हैं। सूत्र-३३-३७ हे भगवन् ! दुःख से करके उद्धर सके ऐसा और फिर दुःख देनेवाला यह पापशल्य किस तरह उद्धरना वो भी कुछ लोग नहीं जानते । हे गौतम ! यह पापशल्य सर्वथा जड़ से ऊखेड़ना कहा है । चाहे कितना भी अति दुर्घर शल्य हो उसे सर्व अंग उपांग सहित भेदना बताया है । प्रथम सम्यग्दर्शन, दूसरा सम्यग्ज्ञान, तीसरा सम्यक्चारित्र यह तीनों जब एकसमान इकट्ठे हों, जीव जब शल्य का क्षेत्रीभूत बने और पापशल्य अति गहन में पहुँचा हो, देख भी न सकते हो, हड्डियाँ हो और उसके भीतर रहा हो, सर्व अंग-उपांग में फँसा हो, भीतर और बाहर के हिस्से में दर्द उत्पन्न करता हो वैसे शल्य को जड़ से उखेड़ना चाहिए । सूत्र-३८-४० क्रिया बिना ज्ञान निरर्थक है और फिर ज्ञान बिना क्रिया भी सफल नहीं होती । जिस तरह देखनेवाला लंगड़ा और दौड़नेवाला अंधा दावानल में जल मरे । इसलिए हे गौतम ! दोनों का संयोग हो तो कार्य की सिद्धि हो । एक चक्र या पहिये से रथ नहीं चलता । जब अंधा और लंगड़ा दोनों एक रूप बने यानि लंगड़े ने रास्ता दिखाया और अंधा उस मुताबिक चला तो दोनों दावानलवाले जंगल को पसार करके इच्छित नगर में निर्विघ्न सही सलामत पहुँचे । ज्ञान प्रकाश देते हैं, तप आत्मा की शुद्धि करते हैं, और संयम इन्द्रिय और मन को आड़े-टेढ़े रास्ते पर जाने से रोकते हैं। इस तीनों का यथार्थ संयोग हो तो हे गौतम ! मोक्ष होता है। अन्यथा मोक्ष नहीं होता। सूत्र - ४१-४२ उक्त-उस कारण से निःशल्य होकर, सर्व शल्य का त्याग करके जो कोई निःशल्यपन से धर्म का सेवन करते हैं, उसका संयम सफल गिना है । इतना ही नहीं लेकिन जन्म-जन्मान्तर में विपुल संपत्ति और ऋद्धि पाकर परम्परा से शाश्वत सुख पाते हैं। सूत्र-४३-४७ शल्य यानि अतिचार आदि दोष उद्धरने की ईच्छावाली भव्यात्मा सुप्रशस्त-अच्छे योगवाले शुभ दिन, अच्छी तिथि-करण-मुहूर्त और अच्छे नक्षत्र और बलवान चन्द्र का योग हो तब उपवास या आयंबिल तप दश दिन तक करके आठसो पंचमंगल (महाश्रुतस्कंध) का जप करना चाहिए । उस पर अठुम-तीन उपवास करके पारणे आयंबिल करना चाहिए । पारणे के दिन चैत्य-जिनालय और साधुओं को वंदन करना । सर्व तरह से आत्मा को क्रोध रहित और क्षमावाला बनाना । जो कोई भी दुष्ट व्यवहार किया हो उन सबका त्रिविध मन, वचन और काया से निःशल्यभाव से मिच्छामिदुक्कडम्'' देना चाहिए । सूत्र-४८-५० फिर से चैत्यालय में जाकर वीतराग परमात्मा की प्रतिमा की एकाग्र भक्तिपूर्वक हृदय से हरएक की वंदना -स्तवना करे । चैत्य को सम्यग् विधि सहित वंदना कर के छठ्ठ भक्त तप कर के चैत्यालय में यह श्रुतदेवता नामक विद्या का लाख प्रमाण जप करे । सर्वभाव से उपशान्त होनेवाला, एकाग्रचित्तवाला, दृढ़ निश्चयवाला, उपयोगवाला, डामाडोल चित्त रहित, राग-रति-अरति से रहित बनकर चैत्यालय की पवित्र जगह में विधिवत जप करे । सूत्र-५१ (इस सूत्र में मंत्राक्षर हैं । जिसका हिन्दी अनुवाद नहीं हो सकता । जिज्ञासुओं को हमारा आगमसुत्ताणि मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 7

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