Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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चारं चरति एस णं अद्धा केवतियं रातिंदिग्गेणं आहि०?, ता तिण्णि छावढे रातिंतिदियसए रातिंदिग्गेणं आहि०९। ता एताए णं अद्धाए सूरिए कति मंडलाइं चरति?, ता चुलसीयं मंडलसतं चरति, बासीतिमंडलसतं दुक्खुत्तो चरति, तं०-णिक्खममाणे चेव ||पवेसमाणे चेव, दुवे य खलु मंडलाई सई चरति तं०-सव्वब्भंतरं चेव मंडलं सव्वबाहिरं चेव १० जइ खलु तस्सेव आदिच्चस्स संवच्छरस्स सई अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति सई अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति सई दुवालसमुहत्ते दिवसे भवति सई दुवालसमुहुत्ता राती भवति, ता पढमे छम्मासे अस्थि अद्वारसमुहुत्ता राती पत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे णत्थि दुवालसमुहत्ता राती भवति, दोच्चे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे णस्थि अद्वारसमुहुत्ता राती अस्थि दुवालसमुहुत्ता राती पत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, पढमे वा दोच्चे वा छम्मासे नत्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे णस्थि पण्णरसमुहुत्ता राती भवति, जणं पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे णस्थिपण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवति णत्थि पण्णरसमुहत्ता राती भवति तत् णं कं हेतुं वदेज्जा?, ता अयण्णं जंबुद्दीवे सव्वदीवसमुद्दाणंसव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणंपं०,ता जताणंसूरिए सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकभित्ताचारं चरति तदाणं उत्तमकट्ठपत्ते उको० अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तदा णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवति दोहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगद्विभागमुहुत्तेहिं अधिया, से ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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