Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णं दाहिणद्ध दिवसे भवति तदा णं उत्तरद्धेवि दिवसे भवति, जता णं उत्तरद्धे दिवसे भवति तता णं अभिंतरपुक्खरद्धे मंदराणं|| पव्वताणं पुरथिमपच्चत्थिमेणं राई भवति सेसं जहा जंबुद्दीवे तहेव जाव ओसप्पिणीउस्सप्पिणीओ १२९॥ अट्ठम् पाहुडं ८॥ __ता कतिकट्ठ ते सूरिए पोरिसीच्छायं णिवत्तेति आहि०?, तत्थ खलु इमाओ तिण्णि पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एव०-जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला संतप्यंति, ते णं पोग्गला संतप्यमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एव०, एगे पुण०.ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला नो संतप्यंति, ते णं पोग्गला असंतप्पमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई णो संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्ते एगे एव०, एगे पुण०.ता जे णं पोग्गला सूरियस्स लेसं फुसंति ते णं पोग्गला अत्थेगतिया संतप्पंति अत्यंगतिया णो संतप्पंति, तत्थ अत्थेगइआ संतप्यमाणा तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई अत्थेगतियाई संतावेति अत्थेगतियाई णो संतावेति एस णं से समिते तावखेत्ते एगे एव०, वयं पुण एवं वदामो-ता जाओ इमाओ चंदिमसूरियाणं देवाणं विमाणेहिंतो लेसाओ बहिया उच्छुढा अभिणिसट्ठाओ पतावंति एतासिं णं लेसाणं अंतरेसु अण्णतरीओ छिण्णलेसाओ संमुच्छंति, तते णं ताओ छिण्णलेस्साओ संमुच्छियाओ समाणीओ तदणंतराई बाहिराई पोग्गलाई संतावेंतीति एस णं से समिते तावक्खेत्ते ॥३०॥ ता कतिकट्टं ते सूरिए पोरिसीच्छायं णिवत्तेति आहि०?, तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एव०. ता अणुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेइ आहि० एगे एव०, एगे। ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥ | ४३ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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