Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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||पुण०. ता अणुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति आहि एतेण अभिलावेणं णेतव्वं, ता जाओ चेव ओयसंठितीए पणवीसं// पडिवत्तीओ ताओ चेव णेतव्वाओ जाव अणुउस्सप्पिणीमेव सूरिए पोरिसीए छायं णिव्वत्तेति आहि० एगे०. वयं पुण एवं वदामोता सूरियस्सणं उच्चत्त व लेस च पडुच्च् छाउद्देसे उच्चत्तं च छायं च पडुच्च लेसुद्देसे लेसंच छायं च पडुच्च उच्चत्तोडेसे, तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एवमाहंसु-ता अस्थि णं से दिवसे जंसिणं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसीच्छायं निव्वत्तेइ, अन्थि ण से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसीच्छायं णिव्वत्तेति एगे एव०, एगे पुण-ता अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसीच्छायं णिव्वत्तेति अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए नो किंचि पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति, तत्थ जे ते एव० ता अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसियं छायं णिव्वत्तेति अस्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दोपोरिसियं छायं नितेइ ते एव०-ता जता णं सूरिए सव्वब्अंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं उत्तमकट्टपत्ते उकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति, तसिं च णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसीयं छायं निव्वत्तेति,ता उग्गमणमुहुत्तंसिय अत्थमणमुहुतंसि यलेसं अभिवड्ढेमाणे नो चेवणं णिबुड्ढेमाणे, ता जता णं सूरिए सव्वबाहिर |मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति जहण्णाए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति, तसिं:च णं दिवसंसि सूरिए दुपोरिसियं छायं निव्वत्तेइ, तं०-उग्गमणमुहत्तंसि य अत्थमणमुहत्तंसि य लेसं अभिवड्ढेमाणे नो चेव ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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