Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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गोलच्छाया, तत्थ णं गोलच्छाया अट्ठविहा पं० तं०- गोलच्छाया अवद्धगोलच्छाया गोलगोल० अवद्धगोलगोल० गोलावलि● अवड्ढगोलावलि० गोपुंज० अवद्धगोलपुंज० (३१) नवमं पाहुडं ९॥
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ता जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहि०, ता कहं ते जोगेति वत्थुस्स आवलियाणिवाते आहि० ?, तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एव० ता सव्वेवि णं णक्खत्ता कत्तियादिया भरणिपज्जवसाणा एगे एव० एगे पुण० ता सव्वेवि णं णक्खत्ता महादीया अस्सेसापजवसाणा पं० एगे एव०, एगे पुण०-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता धणिट्ठादीया सवणपज्जवसाणा पं० एगे एव०, एगे पुण०-ता सव्वेवि णं णक्खत्ता अस्सिणी आदीया रेवतिपज्जवसाणा पं० एगे एव०, एगे पुण० - सव्वेवि णं णक्खत्ता भरणीआदिया अस्सिणीपज्जवसाणा एगे एव०, वयं पुण एवं वदामो- सव्वेवि णं णक्खत्ता अभिइ आदीया उत्तरासाढापज्जवसाणा पं० नं० - अभिई सवणो धणिट्ठा सतभिसया पुव्वभद्दवता उत्तरभद्दवया रेवती अस्सिणी भरणी कत्तिया रोहिणी मिगसिरं अद्दा पुणव्वसू पुस्सो असिलेसा महा पुव्वा फग्गुणी उत्तरा फग्गुणी हत्थो चित्ता साती विसाहा अनुराहा जेट्ठा भूलो पुव्वासाठा उत्तरासाढा ॥३२॥ १०- १॥
ता कहं ते मुहुत्तग्गे आहि ०?, ता एतेसिं णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थिं णक्खत्ते जे णं णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहुत्तस्स चंदेणं सद्धिं जोयं जोएति, अत्थि णक्खत्ता जे गं पण्णरसमुहुत्ते चंदेणं सद्धिं जोयं जोएंति, अत्थि णक्खत्ता जे गं ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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