Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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|मंडलंसतसहस्सेणं अढाणउतीसतेहिं छेत्ता, ता एगमेगेणं मुहुत्तेणंसुरिए केवतियाई भागसयाइं गच्छति?, ताजंजं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस तीसे भागसते गच्छति मंडलं सतसहस्सेणं अट्ठाणउतीसतेहिं छेत्ता, ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं णक्खत्ते केवतियाई भागसताई गच्छति ?, ता जं जं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्स अट्ठारस पणतीसे भागसते गच्छति मंडलं सत्सहस्सेणं अट्ठाणउतीसतेहिं छेत्ता ॥ ८३॥ ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं सूरे गतिसमावण्णे भवति से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ?, बावट्ठिभागे विसेसेति, ता जया णं चंदं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवइ से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेइ ?, ता सत्तट्टि भागे विसेसेति, ता जता णं सूरं गतिसमावण्णं णक्खत्ते गतिसमावण्णे भवति से णं गतिमाताए केवतियं विसेसेति ? ता पंच भागे विसेसेति, ता जता णं चंदं गतिसमावण्णं अभीयाणक्खत्ते णं गतिसमावण्णे पुरच्छिमाते भागात समासादेति त्ता णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभागे मुहत्तस्स चंदेण सद्धिं जाव जोएति त्ता जोयं अणुपरियति त्ता विष्पजहाति ना विगतजोई यावि भवति, ता जता णं चंदं गतिसमावण्णं सवणे णक्खत्ते गतिसमावण्णे | पुरच्छिमाते तहेव जहा अभियिस्स नवरं तीसं मुहुत्ते चंदेण सद्धिं जोअंजोएति त्ता विगतजोई यावि भवइ, एवं पण्णरसमुहुत्ताई रातीसतिमुहुत्ताई पणयालीसमुहुत्ताई भाणितव्वाई जाव उत्तरासाढा (सूर्य० ता जता णं चंदं गतिसमावण्णं गहे गतिसमावण्णे
पुरच्छिमाते भागाते समासादेति त्ता चंदेणं सद्धिं जोगं गँजति त्ता जोगं अणुपरियति त्ता विष्पजहति विगतजोई यावि भवति) In श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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