Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे एसणं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे एसणं आइच्चे | ||संवच्छरे एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स प्रज्जवसाणे । १५॥ १-४॥
__ता केवतियं ते दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति आहि०?, तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पं०, एगे एव०-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसतं दीवं वा समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण०ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं दीवं वा समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसतं दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण-ता अवड्ढं दीवं वा समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चार चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता नो किंचि दीवं वा समुदं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं| चरति, तत्थ् जे ते एवमाहंसु-ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसतं दीवं वा समुई वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति ते एवमाहंसु-जता णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति तया णं जंबुद्दीवं एगंजोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसंजोयणसतं ओगाहित्ता सूरिए चारं चरति तता णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवई, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरइ त्या णं लवणसमुदं एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीस जोयणसयं
ओगाहित्ता चारं चरइ त्या णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अद्वारसमुहुत्ता राई भवति जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एवं I श्री चन्द्रप्रजप्युपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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