Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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तमेव रातो, से णं इमं उत्तरद्धलोयं तिरियं करेइ त्ता दाहिणद्धलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरड्ढलोयाई तिरियं करे|| ता पुरथिमाओ लोयंतातो बहूई जोयणाई तं चेव उड्ढं दूरं उम्पतित्ता एत्य णं पातो सूरिए आगासंसि उत्तिद्वति एगे एव०, वयं पुण एवं वयामो-ता जंबुद्दीवस्स पाईणपडीणायतउदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सतेणं छेत्ता दाहिणपुरच्छिमंसि उत्तरपच्चत्थिमंसियचउब्भागमंडलंसिइमीसेरयणप्यभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो अटु जोयणसताई उड्ढं उम्पतित्ता। एत्य णं पादो दुवे सूरिया आगासाओ उत्तिटुंति, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति त्ता पुरथिमपच्चत्थिमाई जंबुद्दीवभागाइं तमेव रातो, ते णं इमाई पुरच्छिमपच्चस्थिमाई जंबुद्दीवभागाई तिरियं करेंति ना दाहिणुत्तराई जंबुद्दीवभागाई तमेव रातो, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई पुरच्छिम्पच्चत्थिमाणि य जंबुद्दीवभागाइं तिरियं करेंति त्ता जंबुद्दीवस्स पाईणपडीणायत जाव एत्य णं पादो दुवे सूरिया आगासंसि उत्तिटुंति २१॥२-१॥
ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए चारं चरति आहि०?, तत्थ खलु इमातो दुवे पडिवत्तीओ पं०, तत्थेगे एव०ता मंडलातो मंडलं संक्रममाणे २ सूरिए भेयघाएणं संकामइ एगे एव०, एगे पुण-ता मंडलाओ मंडलं संक्रममाणे सूरिए कण्णकलं णिव्वेदेति, तत्य जे ते एव०-ता मंडलातो मंडलं संक्रममाणे २ सूरिए भेयघाएणं संकमइ तेसिं णं अयं दोसे-ता जेणंतरेणं मंडलातो मंडलं संक्रममाणे सूरिए भेयधाएणं संकमति एवतियं च णं अद्धं पुरतो न गच्छति, पुरतो अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेति, In श्री चन्द्रप्रजप्त्यपाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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