Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्थेगे एव०-ता दो जोयणाई अद्धदुचत्तालीसं तेसीतसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं रातिदिएणं विकंपइत्ता २ सूरिए चारं चरति|| एगे एव०, एगे पुण०-ता अड्ढातिजाइं जोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता २ सूरिए चार चरति एगे एव०, एगे पुण०ता तिभागूणाई तिनि जोयणाई एगभेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता २ सूरिए चार चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता तिण्णि जोयणाई अद्धसीतालीसंच तेसीतिसयभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता २ सूरिए चारं चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता अधुट्ठाई जोयणाई एगभेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता सूरिए चार चरति एगे एव०, एगे०-ता चउब्भागूणाई चत्तारिजोयणाई एगमेगेणं राइदिएणं| विकंपइत्ता सूरिए चार चरति एगे एव०, एगे पुण०-ता चत्तारि जोयणाई अद्ध-बावण्णं च तेसीतिसतभागे जोयणस्स एगभेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता सूरिए चारं चरति एगे०, वयं पुण एवं वदामो-ता दो जोयणाई अडतालीसंच एगद्विभागे जोयणस्स एगमेगं मंडलं एघमेगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता सूरिए चार चरति, तत्थ णं को हेतू इति वदेज्जा ?, ता अयण्णं जंबुद्दीवे जाव परिक्खेवेणं, ता जता णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तता णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुत्ते दिवसे भवति जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकभित्ता चारं चरति, ता जया णं सूरिए अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तदा णं दो जोयणाई अडयालीसं च एगट्ठिभागे जोयणस्स एगेणं राइदिएणं विकंपइत्ता सूरिए चार चरति तता णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अणे ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111