Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |पडिवत्ती ॥१२॥३। पडिवत्तीओ उदए, अदुव अत्थमणेसु या भेयधाए कण्णकला, मुहुत्ताण गतीति य ॥१३॥ निक्खममाणे|| सिग्धगई, पविसंते मंदगईई योचुलसीइसयं पुरिसाणं, तेसिं च पडिवत्तीओ ॥१४॥ उदयम्मि अट्ठ भणिया भेदग्धाए दुवे य पडिवत्ती। चत्तारि मुहत्तगईए हुति तइयंमि पडिवत्ती ॥१५॥४। आवलिय मुहुत्तग्गे, एवंभागा य जोगा। कुलाई पुनमासी य, सनिवाए य संठिई ॥१६॥ तारगग्गं च नेता य, चंदग्गत्ति यावरे। देवताण य अज्झयणे, मुहत्ताणं नामया इय॥१७॥ दिवसा राई वुत्ता य, तिहि गोत्ता भोयणाणि यो आइच्चवार मासा य, एवं संवच्छरा इय॥१८॥ जोइसस्स य दाराई, नक्खत्तविजयेऽवियो दसमे पाहुडे एए, बावीसं पाहुडपाहुडा॥१९॥५॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिलानाम नगरी होत्था, रिद्धि० वण्णओ, तीसे भिहिलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं माणिभद्दे णाणं चेइए होत्था, चिराइए वण्णओ, तीसे णं मिहिलाए णगरीए जियसत्तू राया थारिणी देवी वण्णओ, तेणं कालेणं० मि माणिभद्दे चेइए सामी समोसढे परिसा णिग्गया धम्मो कहिओ परिसा पडिगया होतेणं कालेणं० समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूइनामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तूस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं क्यासी १७ ता कहं ते वद्धोवतः मुहुत्ताणं आहितेति वदेज्जा?, ता अट्ठ एकूणवीसे मुहत्तसते सत्तावीसं च सत्तट्ठिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वदेजा पता जया णं, सूरिए सव्वब्भंतरातो मंडलातो सव्वबाहिरं मंडलं उक्संकभित्ता चारं चरति सव्वबाहिरातो मंडलातो सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकभिन्। ॥ श्री चन्द्रप्रज्ञप्त्युपाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संधि For Private And Personal Use Only

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