Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र संख्यात लाख योनिप्रमुख होते हैं । पर्याप्तक वायुकायिक के आश्रय से, अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक (पर्याप्तक वायुकायिक) होता है वहाँ नियम से असंख्यात (अपर्याप्तक वायुकायिक) होते हैं। सूत्र-३३ ___ वे वनस्पतिकायिक जीव कैसे हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर । सूत्र-३४ वे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूत्र - ३५ बादर वनस्पतिकायिक कैसे हैं? दो प्रकार के हैं । प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिक । सूत्र-३६, ३७ वे प्रत्येकशरीर-बादरवनस्पतिकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? बारह प्रकार के हैं । यथा- वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, वलय, हरित, औषधि, जलरुह और कुहण । सूत्र-३८-४१ ये वृक्ष किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं-एकास्थिक और बहुजीवक । एकास्थिक वृक्ष किस प्रकार के हैं? अनेक प्रकार के हैं । (जैसे) नीम, आम, जामुन, कोशम्ब, शाल, अंकोल्ल, पीलू, शेलु, सल्लकी, मोचकी, मालुक, बकुल, पलाश, करंज। तथा- पुत्रजीवक, अरिष्ट, बिभीतक, हरड, भल्लातक, उम्बेभरिया, खीरणि, धातकी और प्रियाल । तथा- पूतिक, करञ्ज, श्लक्ष्ण, शीशपा, अशन, पुन्नाग, नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक । सूत्र-४२ इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हों, उन सबको एकास्थिक ही समझना चाहिए । इन (एकास्थिक वृक्षों) के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं, तथा कन्द भी, स्कन्ध भी, त्वचा भी, शाखा भी और प्रवाल भी (असंख्यात जीवों वाले होते हैं), किन्तु इनके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते हैं । इनके फल एकास्थिक होते हैं। और वे बहुजीवक वृक्ष किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। सूत्र-४३-४६ (जैसे) अस्थिक, तेन्दु, कपित्थ, अम्बाडग, मातुलिंग, बिल्व, आमलक, पनस, दाडिम, अश्वत्थ, उदुम्बर, वट । तथा- न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्षवृक्ष, कादुम्बरी, कस्तुम्भरी और देवदाली । तिलक, लवक, छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुरज और कदम्ब। *तथा- इस प्रकार के और भी जितने वृक्ष हैं सूत्र-४६-५२ (जिनके फल में बहुत बीज हों; वे सब बहुजीवक वृक्ष समझने चाहिए ।) इन (बहुजीवक वृक्षों) के मूल जीवों वाले होते हैं । इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी (असंख्यात जीवात्मक होते हैं ।) इनके पत्ते प्रत्येक जीवात्मक होते हैं । पुष्प अनेक जीवरूप (होते हैं) और फल बहुत बीजों वाले (हैं)। वे गुच्छ किस प्रकार के होते हैं ? गुच्छ अनेक प्रकार के हैं । बैंगन, शल्यकी, बोंडी, कच्छुरी, जासुमना, रूपी, आढकी, नीली, तुलसी तथा मातुलिंगी । एवं- कस्तुम्भरी, पिप्पलिका, अलसी, बिल्वी, कायमादिका, चुच्चू, पटोला, कन्दली, बाउच्चा, बस्तुल तथा बादर। एवं- पत्रपूर, शीतपूरक, जवसक, निर्गुण्डी, अर्क, तूवरी, अट्टकी और तलपुटा |तथा सण, वाण, काश, मद्रक, आघ्नातक, श्याम, सिन्दुवार, करमर्द, आर्द्रडूसक, करीर, ऐरावण, महित्थ । तथाजातुलक, मोल, परिली, गजमारिणी, कुर्चकारिका, भंडी, जावकी, केतकी, गंज, पाटला, दासी और अंकोल्ल । *अन्य जो भी इस प्रकार के हैं, (वे सब गुच्छ समझने चाहिए ।) मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 9

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 181