Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश /सूत्र सूत्र-२५-२८ पृथ्वी, शर्करा, वालुका, उपल, शिला, लवण, ऊष, अयस्, ताम्बा, त्रपुष्, सीसा, रौप्य, सुवर्ण, वज्र । तथाहड़ताल, हींगुल, मैनसिल, सासग, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल । तथा- गोमेज्जक, रुचकरत्न, अंकरत्न, स्फटिकरत्न, लोहिताक्षरत्न, मरकरत्न, मसारगल्लरत्न, भुजमोचकरत्न, इन्द्रनीलमणि । तथा- चन्द्ररत्न, गैरिकरत्न, हंसरत्न, पुलकरत्न, सौगन्धिकरत्न, चन्द्रप्रभरत्न, वैडूर्यरत्न, जलकान्तमणि और सूर्यकान्तमणि । सूत्र- २९ इन के अतिरिक्त जो अन्य भी तथा प्रकार के हैं, वे भी खर बादरपृथ्वीकायिक जानना । बादरपृथ्वीकायिक संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । उनमें से जो पर्याप्तक हैं, इन के वर्ण-गंध-रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद हैं । संख्यात लाख योनिप्रमुख हैं । पर्याप्तकों के निश्रा में, अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं । जहाँ एक (पर्याप्तक) होता है, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक (उत्पन्न होते हैं ।) यह हुआ खर बादरपृथ्वीकायिकों का निरूपण । सूत्र-३० वे अप्कायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर । वे सूक्ष्म अप्कायिक किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के - पर्याप्तक और अपर्याप्तक । बादर-अप्कायिक क्या हैं ? अनेक प्रकार के हैं । ओस, हिम, महिका, ओले, हरतनु, शुद्धोदक, शीतोदक, उष्णोदक, क्षारोदक, खट्टोदक, अम्लोदक, लवणोदक, वारुणोदक, क्षीरोदक, घृतोदक, क्षोदोदक और रसोदक । ये और तथा प्रकार के और भी जितने प्रकार हों, वे सब बादरअप्कायिक समझना। वे बादर अप्कायिक संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं । उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं । उनके संख्यात लाख योनिप्रमुख हैं। पर्याप्तक जीवों के आश्रय से अपर्याप्तक आकर उत्पन्न होते हैं । जहाँ एक पर्याप्तक हैं, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। सूत्र-३१ वे तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर । सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वे बादर तेजस्कायिक किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । अंगार, ज्वाला, मुर्मुर, अर्चि, अलात, शुद्ध अग्नि, उल्का विद्युत, अशनि, निर्घात, संघर्ष-समुत्थित और सूर्यकान्तमणि-निःसृत । इसी प्रकार की अन्य जो भी (अग्नियाँ) हैं (उन्हें बादर तेजस्कायिका समझना ।) ये (बादर तेजस्कायिक) संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं । उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं । उनके संख्यात लाख योनि-प्रमुख हैं । पर्याप्तक के आश्रय से अपर्याप्त उत्पन्न होते हैं । जहाँ एक पर्याप्तक होता है, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक (उत्पन्न होते हैं ।) सूत्र-३२ वायुकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर । वे सूक्ष्म वायुकायिक कैसे हैं ? दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वे बादर वायुकायिक किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । पूर्वी वात, पश्चिमीवायु, दक्षिणीवायु, उत्तरीवायु, ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, तिर्यग्वायु, विदिग्वायु, वातोद्भ्राम, वातोत्कलिका, वातमण्डलिका, उत्कलिकावात, मण्डलिकावात, गुंजावात, झंझावात, संवर्तकवात, घनवात, तनुवात और शुद्ध-वात । अन्य जितनी भी इस प्रकार की हवाएं हैं, (उन्हें भी बादर वायुकायिक ही समझना ।) वे (बादर वायुकायिक) संक्षेप में दो प्रकार के हैं । यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं । इनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों प्रकार हैं । इनके मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 8Page Navigation
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