Book Title: Agam 15 Pragnapana Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम सूत्र १५, उपांगसूत्र-४, 'प्रज्ञापना' पद/उद्देश/सूत्र सूत्र-५२-५६ ___ वे (पूर्वोक्त) गुल्म किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । वे इस प्रकार- सेरितक, नवमालती, कोरण्टक, बन्धुजीवक, मनोद्य, पीतिक, पान, कनेर, कुर्जक, सिन्दुवार । तथा- जाती, मोगरा, जूही, मल्लिका, वासन्ती, वस्तुल, कच्छुल, शैवाल, ग्रन्थि, मृगदन्तिका । तथा- चम्पक, जीती, नवनीतिका, कुन्द, तथा महाजाति; इस प्रकार अनेक आकार-प्रकार के होते हैं । (उन सबको) गुल्म समझना । *यह हुई गुल्मों की प्ररूपणा । सूत्र- ५६-५८ वे (पूर्वोक्त) लताएं किस प्रकार की होती हैं ? अनेक प्रकार की हैं । यथा- पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चम्पकलता, चूतलता, वनलता, वासन्तीलता, अतिमुक्तलता, कुन्दलता और श्यामलता । * और जितनी भी इस प्रकार की हैं, (उन्हें लता समझना चाहिए।) सूत्र-५८-६४ ___ वे वल्लियाँ किस प्रकार की होती हैं ? अनेक प्रकार की हैं । वे इस प्रकार हैं- पूसफली, कालिंगी, तुम्बी, त्रपुषी, एलवालुकी, घोषातकी, पटोला, पंचांगुलिका, नालीका । तथा- कंगूका, कुद्दकिका, कर्कोटकी, कारवेल्लकी, सुभगा, कुवधा, वागली, पापवल्ली, देवदारु । तथा- अपकोया, अतिमुक्तका, नागलता, कृष्णसूरवल्ली, संघट्टा, सुमनसा, जासुवन, कुविन्दवल्ली । तथा- मुद्वीका, अप्पा, भल्ली, क्षीरविराली, जीयंती, गोपाली, पाणी, मासावल्ली, गुंजावल्ली, वच्छाणी । तथा- शशबिन्दु, गोत्रस्पृष्टा, गिरिकर्णकी, मालुका, अंजनकी, दहस्फोटकी, काकणी, मोकली तथा अर्कबोन्दी । ..... * इसी प्रकार की अन्य जितनी भी (वनस्पतियाँ हैं, उन सबको वल्लियाँ समझना ।) सूत्र-६४-६७ वे पर्वक (वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं । इक्षु, इक्षुवाटी, वीरण, एक्कड़, भमास, सूंठ, शर, वेत्र, तिमिर, शतपर्वक, नल । वंश, वेलू, कनक, कंकावंश, चापवंश, उदक, कुटज, विमक, कण्डा, वेलू और कल्याण। ..... * और भी जो इसी प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, (उन्हें पर्वक में ही समझनी चाहिए)। सूत्र-६७-७० वे तृण कितने प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । सेटिक, भक्तिक, होत्रिक, दर्भ, कुश, पर्वक, पोटकिला, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितांश, शुकवेद, क्षीरतुष । एरण्ड कुरुविन्द, कक्षट, सूंठ, विभंगू, मधुरतृण, लवणक, शिल्पिक और सुंकलीतृण । .... * जो अन्य इसी प्रकार के हैं (उन्हें भी तृण समझना चाहिए)। सूत्र-७०-७३ वे वलय (जाति की वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं । ताल, तमाल, तर्कली, तेतली, सार, सार-कल्याण, सरल, जावती, केतकी, कदली धर्मवृक्ष । तथा- भुजवृक्ष, हिंगुवृक्ष, लवंगवृक्ष । पूगफली, खजूर और नालिकेरी । ..... * यह और ईस प्रकार की अन्य वनस्पति को वलय समझना । सूत्र-७३-७७ वे हरित (वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं। अद्यावरोह, व्युदान, हरितक, तान्दुलेयक, तृण, वस्तुल, पारक, मार्जार, पाती, बिल्वी, पाल्यक । दकपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक शक, माण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्लशाक और जीवान्तक । तथा- तुलसी, कृष्ण, उदार, फाणेयक, आर्यक, भुजनक, चोरक, दमनक, मरुचक, शतपुष्पी तथा इन्दीवर |.....* अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, वे सब हरित के अन्तर्गत समझना । सूत्र-७७ वे ओषधियाँ किस प्रकार की होती हैं ? अनेक प्रकार की हैं । शाली, व्रीहि, गोधूम, जौ, कलाय, मसूर, तिल, मूंग, माष, निष्पाव, कुलत्थ, अलिसन्द, सतीण, पलिमन्थ, अलसी, कुसुम्भ, कोदों, कंगू, राल, वरश्यामाक, कोदूस, शण, सरसों, मूलक बीज; ये और इसी प्रकार की अन्य जो भी (वनस्पतियाँ) हैं, (उन्हें भी ओषधियों में गिनना)। वे जलरुह (वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? अनेक प्रकार की हैं । उदक, अवक, पनक, शैवाल, कलम्बुका, मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (प्रज्ञापना) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 10

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