Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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Acharya Si Kailashsagarsun Gyarmandir नस्थि नवि अस्थि पुरिसकारो पच्चक्खाणमवि नस्थि नवि अस्थि कालमच्चू य अरिहंता चक्वट्टी बलदेवा वासुदेवा नत्थि नेवस्थि केई रिसओ धमाधम्मफलं च नवि अस्थि किंचि बहुयं च थोवकं वा. तम्हा एवं विजाणिऊण जहा सुबह इंदियाणुकूलेस सव्वविसएसु वह पत्थि काई किरिया वा अकिरिया वा एवं भणंति नथिकवादिणो वामलोगवादी, इमंपि बितीयं कुदंसणं असब्भाववाइणो पण्णवेति मूढा-संभूतो अंडकाओ लोको सयंभूणा सयं च निम्मिओ, एवं एयं अलियं. पयावइणा इस्सरेण य कयंति केति. एवं विण्हमयं कसिणमेव यजगंति केई. एवमेके वदंति मोसं एको आया अकारको वेदको यसुक्यस्स दुक्क्यस्सय करणाणि कारणाणि सव्वहा सव्वहिं च निच्चो य निकिओ निग्गुणो य अणुव (अन्नो अपा० )लेवओत्तिविय एवमाहंसु असब्भावं, जंपि इहं किंचि जीवलोके दीसइ सुक्यं वा दुक्यं वा एयं वा जदिच्छाए वा सहावेण वावि दइवतप्पभावओ वावि भवति, नत्थेत्थ किंचि कयकतत्तं लक्खणविहाणनियतीए कारियं एवं केई जंपति इड्ढिरससातगारवपरा बहवे करणालसा परूवेति धम्मवीमंसएण भोसं, अवरे अहम्मओ रायदुटुं अब्भक्खाणं भणेतिअलियं चोरोत्ति अचोरयं करेंतंडामरिउत्तिविय एमेव उदासीणं दुस्सीलोति य पदारं गच्छतित्ति मइलिंति सीलकलियं अयंपि गुरुतप्पओ अण्णे एमेव भणंति उवाहणंता मित्तकलत्ताई सेवंति अयंपि लुत्तधम्मो इमोवि विसंधायओ पावकम्मकारी अगम्मगामी अयं दुरण्या बहुएसु य पापगेसु जुत्तोत्ति एवं जपंति मच्छरी, भद्दके वा गुणकित्तिनेहपरलोगनिप्पिवासा. एवं ते अलियवयणदच्छ। पदोसुप्पायणप्पसत्ता वेढेन्ति अक्खातियबीएण अप्पाणं कम्मबंधणेण मुहरी असमिक्खियप्पलावा ॥ श्री प्रश्रव्याकरणदशाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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