Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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काहिंति अणंतए अकयपुण्णा । जे य न सुगंति धम्म सुणिऊण य जे पमायंति ॥५॥ अणुसिटुंपि बहुविहं मिच्छाट्ठिी य|| जे नरा अहमा (प्र० अबुद्धिया)। बद्धनिकाइयकम्मा सुणंति धम्म न य करेन्ति ॥ ६॥ किं सक्का काउं जे जं नेच्छइ ओसहं मुहा पाउं । जिणवयणं गुणमहुरं विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥ ७ ॥ पंचेव (प्र० ते) उज्झिऊणं पंचेव य रक्खिऊण भावेणं । कम्मरयविष्पमुक्का सिद्धिवरमणुत्तरं जंति ॥८॥ द्वारं ५ ॥ ___ जंबू!-एत्तो संवरदाराई पंच वोच्छामि आणुपुव्वीए । जह भणियाणि भगवया सव्वदुहविमोक्खणद्वाए ॥ ९ ॥ पढम होइ अहिंसा बितियं सच्चवयणंति पण्णंती दत्तमणुनाय संवरो य बंभचेरमपरिग्गहत्तं च ॥ १० ॥ तत्थ पढम् अहिंसा तसथावरसव्वभूयखेमकरी । तीसे सभावणाए किंची वोच्छं गुणुद्देसं ॥ ११ ॥ ताणि 3 इमाणि सुव्वय । महव्वयाई (लोकहियसवयाई) सुयसागरदेसियाई तवसंजममहव्वयाई सीलगुणवरव्वयाई सच्चज्जवव्वयाई नरगतिरियमणुयदेवगतिविवजकाई सव्वजिणसासणगाई कम्मरयविदारगाई भवसयविणासणकाई दुहसयविमोयणकाई सुहसयपवत्तणकाई कापुरिसदुरुत्तराई (सप्पुरिसतीरियाई पा०) सप्पुरिसनिसेवियाई निव्वाणगमणमग्गसग्गप्पणायकाई (याणगाई पा०) संवरदाराइंपंचकहियाणि ३ भगवया, तत्य पढम् अहिंसा जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवतिदीवो ताणं सरणं गती पट्टा निव्वाणं निव्वुई समाही सत्ती कित्ती कंती रती य विरती य सुयंगतित्ती १० दया विमुत्ती खन्ती सम्भत्ताराहणा महंती बोही बुद्धी घिती समिती रिद्धी २० विद्धी | श्री प्रश्रव्याकरणदशाङ्गम् ॥
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पू. सागरजी म. संस्खलिता
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