Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || अत्थइसत्थच्छरूप्पवायं विविहाओ य जोगजुंजणाओ अन्त्रेसु एवमादिएसु बहूसु कारणसएसु जावज्जीवं नडिज्जए संचिणंति मंदबुद्धी, परिग्गहस्सेव य अट्ठाए करंति पाणाण वहकरणं अलियनियडिसाइसंपओगे परदव्वअभिज्जा सपरदारअभिगमणासेवणाए आयासविसूरणं कलहभंडणवेराणि य अवमाणणविमाणणाओ इच्छामहिच्छप्पिवाससतततिसिया तहगेहिलो भधत्था अत्ताणा अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोभे अकित्तणिज्जे परिग्गहे चेव होंति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाया सन्ना य कामगुणअण्हवगा इंदियलेसाओ सयणसंपओगा सचित्ताचित्तमी सगाई दव्वाई अनंतकाई इच्छंति परिधेत्तुं सदेवमणुयासुरम्भि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहिं भणिओ नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए । १९ । पर लोगम्भि य नट्ठा तमं पविट्ठा महयामोहमोहियमती तिमिसंघकारे तस्थावरसुहुमबादरेसु पजत्नमपज्जत्तग एवं जाव परियहंति दीहभद्धं जीवा लोभवससंनिविट्ठा, एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, न अवेततित्ता अस्थि हु मोक्खेत्ति एवमाहंसु, नायक्कुलनंदणो 'महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं. एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा नाणामणिकणगरयणमहरिह एवं जाव इमस्समोक्खवरमोत्तिमग्गस्स फलिह भूयो । चरिमं अघम्मदारं समत्तं । २० । एएहिं पंचहिं असंवरेहिं (प्र० आसवेहिं ) रयमादिणित्तुमणुसमयं । चउविहगइपजंतं अणुपरियद्धति संसार ॥ ४ ॥ सव्वगई पक्खंदे ॥ श्री प्रश्रव्याकरणदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ३९ Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal

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