Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir उल्लंबिजंति रुक्खसालासु केई कलुणाई विलवमाणा अवरे चउरंगधणियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंते दूरपातहु विसमपत्थर सहा अन्ने यगयचलणमलणयनिम्मद्दिया कीरंति पावकारी अट्ठारसखंडिया य कीरंति मुंडपर सूहिं केई उक्त्तकन्नोट्ठनासा उप्पाडियन्यणदसणवसणा जिब्भिंदियऽच्छिया छिन्नकन्नसिरा पणिज्जंते छिज्जन्ते य असिणा निव्विसया छिन्नहत्थपाया पमुच्चंते जावज्जीवबंधणा य कीरंति केई परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलनियलजुयलरुद्धा चारगावहतसारा सयणविष्यमुक्का मित्तजणनिरिक्खि (रक्कि ) या निरासा बहुजणधिक्कार सद्दलज्जायिता अलजा अणुबद्धखुहा पारद्धसीउण्हतण्हवेयणदुग्धट्टिया विवन्त्रमुहविच्छविया विहलमतिलदुब्बला किलंता कासंता वाहिया य आमाभिभूयगत्ता परूढ नह के समंसुरोमा छगमुत्तंमि नियगंमि खुत्ता तत्थेव मया अकामका बंधिऊण पादेसु कड्ढिया खाइयाए छूटा तत्थ य बगसुणगसियालकोलमज्जारचंड संदंसगतुंड पक्खिगणविविह मुहसयलविलुत्तगत्ता कयविहंगा केई किमिणा य कुहियदेहा अणिट्ठवयणेहिं सम्पमाणा सुठु कयं जं मउत्ति पावो तुट्टेणं जणेण हम्ममाणा लज्जावणका य होति सयणस्सविय दीहकालं मया संता, पुणो परलोगसमावन्ना नरए गच्छेति निरभिरामे अंगारपलित्तककष्प अच्चत्थसीतवेदण अस्साउदिन्नसयतदुक्खसयसमभिदुते ततोवि उव्वट्टिया समाणा पुणोवि पवज्जंति तिरियजोणिं तहिंपि निरयोवमं अणुहवंति वेयणं, ते अनंतकालेण जति नाम कहिंचि मणुयभावं लभंति णेगेहिं णिरयगतिगमणतिरियभवसयसहस्सपरियद्वेहिं तत्थविय भवंतऽणारिया नीचकु लसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगबज्झा तिरिक्खभूता य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं निबंधंति ॥ श्री प्रश्रव्याकरणदशाङ्गम् ॥ २४ पू. सागरजी म. संशोधित www.kobatirth.org For Private And Personal

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