Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विकयगाढ दिनपहार मुच्छिं तरु लंतवें भलविलावकलुणे, हयजोह भमंततुरगउद्दाममत्तकुं जर परिसंकितजणनिलुक्के छिन्नधयभग्गरह वर नद्व सिर करिकलेवराकिन्नपतित पहरणविकिन्नाभरणभूमिभागे नच्चंतक बंधपत्र र भयंकर वाय सपरिलें तगिद्धमंडलममंतच्छायंधकारगंभीरे वसुवसुहविकंपितव्व पच्चक्खपिउवणं परमरुद्दबीहणगं दुष्पवेसतरंगं अभिवयंति संगामसंकडं, परघणं महंता अवरे पाइकचोरसंघा सेणावतिचोरवंदपागढिका य अडवीदेसदुग्गवासी कालहस्तिरत्तपीतसुक्किल्ल अणेगस्यचिंधपट्टबद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कज्जे रयणागर सागरं च उम्मीसहस्समालाउलाकुलवितोयपोतकलकलेंतकलियं पायालसहस्सवायवसवेगसलिलउद्धभ्मंमाणदगर यरयंधकारं वरफेणपरधवलपुलंपुलसमुट्ठियट्टहासं मारुयविच्छुभमाणपाणियजलमालुप्पीलहुलियं अविय समंतओ खुभियलुलियखोखुम्भमामपक्खलियचलियविपुलजलचक्कवालमहानईवेगतुरीय आपूरमाणगंभीर विपुल आवत्तचवलभममाणगुप्पमाणुच्छलंतपच्चोणियत्तपाणियपधावियखर फरु सपयंडवा लियसलिलं फुट्टंतवीतिकल्लोलसंकुल्जलं महामगरमच्छकच्छभोहारगाहतिमिसुंसुमार सावयसमाहयसमुद्धायमाणकपूरघोरपरं कायरजणहियकंपणं घोरमारसंतं महम्भयं भयंकरं पतिभयं उत्तासणगं अणोरपारं आगासं चेव निरवलंब उभ्याइयपवणधणितनोल्लियउ वरु वरितरं गदरिय अतिवेगवेगचक्खु पह मुच्छरंतं कत्थई गंभीर विपुल गज्जियगुंजियनिग्धायगरुयनिवतितसुदीह नीहारि दूर सुव्वंतगंभीरधुगुधुगंतसहं पडिपहरुं भंतजक्खर क्खसकुहंड पिसाय (रुसियतज्जाय पा० ) उवसग्गसहस्ससंकुलं बहुथ्याइय (उवद्दव पा० ) भूयं विरचितबलिहोमधूवउवचारदित्ररुधिरच्चणाकरणपयत॥ श्री प्रश्रव्याकरणदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २० For Private And Personal

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