Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(४७) एवमेगे नियागट्ठी धम्ममाराहगा वयं अदुवा अहम्ममा वजे न ते सव्वजुयं वए (४८) एवमेगे वियक्कार्हि नो अण्णं पजुवासिया अप्पनो य वियक्काहिं अयमंजू हि दुम्मई (४९) एवं तक्काए सार्हेता धम्माधम्मे अकोविया दुक्खं ते नातिवति सउणी पंजरं जहा (५०) सयं सयं पसंतंता गरहंता परं वयं
जे उ तत्थ विउस्संति संसारं ते विउस्सिया (५१) अहावरं पुरखायं किरियावाइदरिसणं कम्मचिंतापणट्ठाणं दुक्खखंधविवद्धणं (५२ ) जाणं कारणऽणाउट्टी अबुहो जं च हिंसइ पुट्ठो वेदेइ परं अवियत्तं खु सावज्जं (५३) संतिमे तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं अभिकम्पा य पेसा य मणसा अणुजाणिया (५४) एए उ तओ आयाणा जेहिं कीरइ पावगं एवं भावविसोहीए णिव्वाणमभिगच्छइ (५५) पुत्तं पिता समारंभ आहारठ्ठे असंजए भुंजमानो वि मेहावी कम्पुणा नोवलिप्पते (५६) मणसा जे पउस्संति चित्तं तेसिं न बिञ्जइ अणवज्रं अहं तेसिं न ते संवुडचारिनो ( ५७ ) इच्छेयाहिं दिट्ठीहिं सायागारवणिस्सिया सरणं ति भण्णमाणा सेवंती पावगं जणा जहा आसाविर्णि नावं जाइअंधो दुरूहिया इच्छाई पारमागंतु अंतराले विसीयई (५९) एवं तु समणा एगे मिच्छदिट्ठी अणारिया संसारपारकंखी ते संसारं अणुपरियहंति त्ति वेमि पढ़ने अज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो -: तइओ उद्देसो :
(५८)
-
(६०) जं किंचि वि पूइकडं सड्ढी आगंतु ईहियं सहस्संतरियं मुंजे दुपक्खं चैव सेवई (६१) तमेव अवियाणंता विसमंसि अकोविया मच्छा वेसालिया चैव उदगस्सऽ भियागमे (६२) उदगस्स प्पभावेणं सुक्कम्मि घातमेति उ ढंकेहि य कंकेहि य आमिसत्येहिं ते दुही
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सूपगडो १/१/२/४७
॥४७॥1-20
||४८|| 21
॥४९॥-22
114011-23
॥५१॥-24
114211-25
॥५३॥१-26
॥५४॥1-27
$1441-28
114411-29
॥५७॥1-30
||५८।।-31
14311-32
18011-1
॥६१॥-2
॥६२॥-3

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