Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरक्खंघो-१, अन्धरणं-५, उद्देसो-२ (३३३) कंदूशु पक्खिप्प पयंति घालं तओ विदड्दा पुण उप्पतंति ते उड्ढकाएहि पक्खज्जमाणा अवरेहि खजति सणप्फएहिं।।३३३।।-7 (३३४) समूसियं नाम विधूमठाणं जं सोयतत्ता कलुणं धणंति अहोसिरं कटु वित्तिकणं अयं व सत्थेहि समूसवेति ॥३३४|-8 (३३५) समूसिया तत्थ विसूणिवंगा पक्खीहि खजंति अओमुहेहि संजीवणी नाम चिरछिईया जंसी पया हम्मइ पावचिया ॥३३५||-9 (३३६) तिक्खाहि सूलाहि ऽपितावयंति वसोवगं सावधयं व लद्धं ते सूलविद्धा कलुणं थणंति एगंतदुक्खं दुहओ गिलाणा ॥३३६||-10 (३३७) सया जलं ठाण निहं महंतं जंसी जलंतो अगणी अकट्ठो चिठ्ठति तत्या बहकूरकम्मा अरहस्सरा केइ चिरट्टिईया ।।३३७||-11 (३३८) चिया महंतीउ समारभित्ता छुटमंति ते तं कलुणं रसंतं आवट्टई तत्थ असाहुकम्मा सप्पी जहा छूढं जोइमज्झे ॥३३८1-12 (३३९) सया कसिणं पुण घम्मठाणं गाढीवणीयं अइदुक्खधम्म हत्येहि पाएहि य बंधिऊणं सत्तुं व दंडेहि समारभंति ॥३३९|-13 {३४०) मंजंति बालस वहेण पट्ठि सोसं पिमिदंति अयोधणेहिं ते भिनदेहा फलगा व तट्ठा तत्ताहि आराहि नियोजयंति॥३४०1-14 (३४१) अभिमुंजिया रुद्द असाहुकम्मा उसुचोइया हथिदहं वहंति एग दुरूहित्तु दुवे तओ वा आरुस्स विज्झति ककाणओ से ॥३४१1-15 (३४२) वाला बला भूमिमणुक्क मंता पविज्जलं कंडइल महंतं विवद्धतप्पेहि विसण्णचित्ते सपीरिया कोट्टबलि करेति ॥३४२||-16 (३४३) यालिए नाम महाभिताचे एगायए पव्ययमंतलिखे हमति तथा बहुकूरम्मा परं सहस्साण मुहत्तगाणं (३४४) संवाहिया दुकड़िणो धणंति अहो य राओ परितप्पमाणा एगंतकूडे गरए महंते कूडेण तत्था विसमे हया उ ॥३४४|-18 (३४५) भंजंति णं पुचपरी सरोसं समग्गरे ते मसले गहेडं। ते भिन्नदेहा रुहिरं वमंता ओमद्धगा धरणितले पडंति ॥३४५||-12 (३४६) अणासिया नाम महासियाला पगब्मिया तत्य सयावकोया खजति तत्था बहुकूरकम्मा अदूरया संकलियाहि बद्धा ॥३४६।1-20 (३४७) सयाजला नाम नईऽभिदुग्गा पविजाला लोहवित्तीणतत्ता जंसीऽभिदुग्गंसि पवजमाणा एगायताऽणुछ मणं करेति ॥३४७||-21 (३४८) एयाई फासाई फुसंति यालं निरंतरं तत्थ चिरट्ठिईयं न हम्पमाणस्स उ होइ ताणं एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं ॥३४८/-22 (३४१) जं जारिसं पुबमकासि कम्मं तमेव आगच्छद संपराए एगंतदुक्खं भवमजिणिता वेदेति दुक्खी तरणंतदुक्खं ॥३४९1-23 (३५०) एवाणि सोचा नरगाणि धीरे न हिंसए कंचण सव्वलोए एगंतदिट्ठी अपरिगहे उ बुझेज लोगस्स वसं न गच्छे ॥३५०।- 24 ॥३४३।।-17 For Private And Personal Use Only

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