Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुयांची - १, अजनयणं-५, उद्देसो- १ पंचमं www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अज्झयणं- नरयविमत्ती -: पढमो उद्देसी : 1130911-2 (३००) पुच्छिंसुहं केवलियं महेर्सि कहंऽभितावा नरगा पुरत्या अजाणओ मे मुणि बूहि जाणं कहं णु वाला नरगं उवैति ॥३००१/- 1 (३०१ ) एवं मए पुट्ठे महाणुभावे इणमब्बवी कासवे आपणे पवेयइस्सं दुमदुग्गं आदिणियं दुकडिणं पुरत्या (३०२ ) जे केइ बाला इह जीवियट्ठी पावाई कम्माई करेति रुक्षा ते घोररूवे तिमिसंधयारे तिव्वाणुभावे नरए पति (३०३) तिव्वं तसे पाणिणो थावरे य जे हिंसई आयहं पडुधा जे लूसए होइ अदत्तहारी न सिक्खई सेयवियस्स किंचि (३०४) पागपि पाणे बहुणं तिवाई अनिव्वुड़े घायमुवेइ बाले ॥३०२॥-३ निहो निसं गच्छ अंतकाले अहोसिरं कट्टु उवेइ दुग्गं ||३०४ || 5 (३०५) हण छिंदहं भिंदह णं दहेह सद्दे सुणेत्ता परघम्मियाणं ते नारगाऊ भवभिण्णसण्णा कंखति के नाम दिसं वयामो ॥३०५॥-6 (३०६ ) इंगालरासि जलियं सजोई ओवमं भूमिमणुक्क पंता ते इझमाणा कलुणं धणंति अरहस्सरा तत्व चिरट्रिट्ठईया ॥ ३०६ ॥ - 7 (३०७ ) जइ ते सुया वेयरणीऽभिदुग्गा निसिओ जहा खुर इव तिक्खसोया तरंति ते वैरणीऽभिदुग्गं उसुचोइया सतिसु हम्ममाणा (३०८) कोलेहिं विज्झंति असाहुक मा नावं उवेंते सइविप्पहूणा ॥१३०७१-७ 1130311-4 अणे तु सूलाहि तिसूलियाहिं दीहाहि विद्धूण अहे करेति ॥३०८|| -9 (३०९) केसिं च बंधित्तु गले सिलाओ उदगंसि बोलेति महालयंसि कलंबुयावालुयमुम्मुरे य लोर्लेति पञ्चंति य तत्य अण्णे ( ३१० ) असूरियं नाम महामितावं अंधं तमं दुष्पतरं महंतं ॥३०९॥ 10 ॥ ३१० || - 11 उडूढं अहे वं तिरियं दिसासु समाहिओ जत्यगणी झियाइ ( ३११ ) जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे अविजाणओ डज्झइ लुतपण्णी सयाय कलुणं पुण धम्मठाणं गाठोवणीयं अइदुक्खधम्मं ( ३१२) चत्तारि अगणीओ समारभेत्ता जहि कूरकम्मा भितवेति बालं ते तत्व चितऽभितप्यमाणा मच्छा व जीवंतुवजोइपत्ता ॥ ३१२॥ - 13 ( ३१३) संतच्छृणं नाम महाभितावं ते नारगा जत्थ असाहुकम्मा ॥३११॥-22 पयंति णं णेरइए फुरंते सजीवमच्छे व अयो -कचल्ले ( ३१५ ) णो चेव ते तत्थ मसीभवंति ण मिजई तिब्बभिवेयणाए तमाणुभागं अणुवेययंता दुक्खंति दुक्खाणी इह दुक्क डेणं (३१६) तहिं च ते लोलणसंपगाढे गाढं सुतत्तं अगणि वयंति २१ हत्थेहि पाएहि य वंधिऊणं फलगं व तच्छंति कुहाडहत्या ||३१३॥-14 (३१४) रुहिरे पुणो वद्य समुस्सिवंगे भिण्णुत्तिभंगे परिवत्तयंता ।।३१४||-15 For Private And Personal Use Only ||३१५ || - 16 न तत्थ सायं लभंतीऽभिदुग्गे अरहियाभितावे तह वी तवेति ॥ ३१६ || 17

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