Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सूपगडो १/५/२/३५१
सव्यमेयं इइ बेयइत्ता कंखेज कालं धुयमायरंते -त्ति वेमि ॥३५१ ॥ -25
• पंचमे अन्प्रयणे बीओ उद्देसो समत्तो • पंचमं अञ्झयणं समतं •
छठं अज्झयणं - महावीरत्थुई
( ३५२) पुच्छिंसु णं समणा पाहणा य अगारिणो या परतित्थिया य
से के इमं हितगं घम्ममा अलि साहुसमिक्खयाए ।।३५२॥ -1 (३५३) कहं व नाणं कह दंसणं से सीलं कहं नायसुयस्स आसि
(३५१) एवं तिरिक्खमणुयामरेसं चउरंतणंतं तयणूविदागं
जाणासि णं भिक्खु जहातहेणं अहासुयं यूहि जहा निसंतं ॥ ३५३॥ - 2 (३५४) खेयण्णए से कुसले मेहावी अनंतनाणी य अणतदंसी
जसंसिणो चक्खुप ठियस्स जाणाहि धम्मं च धिदं च पेह || ३५४ || 3 ( ३५५) उड्ढअहे यं तिरियं दिसासु तसा य जे थावर जे य पाणा
सेणिञ्चणिचेहि समिक्ख पण्णे दीवे व धम्मं समियं उदाहु || ३५५ || - 4 ( ३५६ ) से सव्वदंसी अभिभूयनाणी निरामगंधे धिइमं ठियप्पा अनुत्तरे सव्वजगंसि विनं गंधा अतीते अमए अणाऊ ( ३५७ ) से भूइपण्णे अणिएयचारी ओहंतरे धीरे अनंतचक्खू अनुत्तरं तवति सूरिए वा वइरोयणिंदे व तमं पगासे ( ३५८) अनुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं णेता मुणी कासवे आसुपणे इंदे व देवाण महाणुभावे सहस्सणेता दिवि णं विसिद्धे ॥३५८॥1-7 ( ३५९ ) से पन्नया अक्खयसागरे वा महोदही वा वि अनंतपारे अनाइले या अकसाइ मुक्के सक्के व देवाहिवई जुईनं (३६०) से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए सुदंसणे वा नगसब्बसेट्ठे सुराल वा वि मुदागरे से बिराए नेगगुणोववेए (३६१) सयं सहस्साण उ जोयणाणं तिकंडगे पंडगवेजयंते
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।।३५७।। 8
।।३५९॥-8
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से जोयणे नवनउति सहस्से उद्धस्सिए हेट्ठ सहस्समेगं ॥ ३६९ ॥ - 10 (३६२) पुट्ठे नभे चिट्ठइ भूमिवट्ठिए जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति से हेमवण्णे बहुनंदणे व जंसी एवं वेययई महिंदा (३६३) से पव्वए सद्दमहप्पगासे विरायती कंचणमट्ठवणे अनुत्तरे गिरिसु य पव्यदुग्गे गिरीबरे से जलिए व मोमे (३६४) महीए मज्झम्मि दिए नगिंदे पन्नायते सूरियसुद्धलेसे
॥३६२॥-11
१३६३॥ 12
एवं सिरीए उ स भूरिवणे मनोरमे जोयति अधिमाली || ३६४ ॥ - 13 (३६५) सुदंसणस्सेस जसो गिरिस्त पद्धती महतो पव्वतस्स
एतोब समणे नायपुत्ते जाती- जसो दंसण-नाण-सीले || ३६५ 11-14 (३६६) गिरीबरे वा निसढायताणं रुयगे व सेट्ठे बलयायताणं ततो मे से जगभूतिपणे मुणीण मज्झे तमुदाहु पण्णे (२६७) अनुत्तरं धम्ममुदीरइत्ता अनुत्तरं झाणवरं झियाइ सुसुक्क सुक्कं अपगंडसुकं संखेदुवेगंतवदातसुकं
|| ३६६ || 15
३६७॥-16

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