Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir YO सूपगहरे 9/941-1१२० (६२०) से हु चक्खू मणुस्साणं जे कंखाए य अंतए अंतेण खुरो बहती चकअंतेण लोट्टति ॥६२011-14 (६२१) अंताणि धीरा सेवंति तेण अंतकरा इहं इह माणुस्सए ठाणे धम्ममाराहिउँ नरा ||२१||-15 (५२२) नितिट्ठा व देवा व उत्तरीए त्ति मे सुतं स्तं च मेतमेगेसिं असणुस्सेसु नो तहा ॥२२||-16 (९२३) अंतं करोति दुक्खाणं इहमेगेसि आहितं आघातं पुण एगेसिं दुल्लभेऽयं समुस्सए ॥६२३॥1-17 (६२४) इतो विद्धंसमाणस्स पुणो संबोहि दुलपा दुल्लमाओ तहचाओ जे धम्मटुं वियागरे ॥६२४||-18 (६२५) जे धम्म सुद्धमक्खंति पडिपुण्णमणेलिसं अणेलिसस्स जं ठाणं तस्स जम्मकहा कुतो ॥६२५11-19 (६२६) कुतो कयाइ मेहावी उप्पजंति तथागता तथागता अपुडिण्णा चक्खू लोगस्सनुत्तरा ॥६२६1-20 (६२५) अनुत्तरे य ठाणे से कासवेण पवेदिते जं किया निबुडा एगे निळं पाति पंडिया ॥६२७11-21 (६२८) पंडिए वीरियं लद्धं निग्धायाय पवत्तगं धुणे पुबकडं कम्मं नवं चावि न कुव्बइ ॥६२८11-22 (१२९) न कुबइ महावीरे अणुपुबकडं रयं रयसा संमुहीभूते कम्म हेसाण जं मतं ॥६२९||-23 (६३०) जं मतं सव्वसाहूणं तं मतं सल्लगत्तणं साहइत्ताण तं तिण्णा देवा वा अमविसु ते १६३०||-24 (६३१) अभविसु पुरा वीरा आगमिस्सा वि सुव्वया दुण्णिबोहस्स ममस्स अंतं पाउकरा तिषण - त्ति बेमि १६३१11-25 • पन्नासमं अग्नपणं सक्तं . सोलसमं अन्झयण-पाहा (६३२) अहाह भगवं-एवं से दंते दविए योसट्ठकाए त्ति बच्चे-माहणे त्ति वा, सपणे त्ति वा, भिक्खू त्ति वा, निगंथे त्ति वा पडिआए-भंते कहं दंते दविए योसट्ठकाए त्ति यच्चेपाहणे त्ति वा समणे त्ति वा भिक्खू त्ति या निग्गंधे त्ति वा तं नो बूहि महामुणी इतिविरतसव्यपावको पेज - दोस - कलह-अब्भक्खाण • पेसुण्ण-परपरिवाद-अरतिरति-मायामोसमिच्छादसणसल्ले विरते समिए सहिए सया जए, नो कुझे नो माणी पाहणे ति वच्चे एस्थ वि समणे अणिस्सिए अणिदाणे आदाणं च अतियायं च मुसावायं च बहिद्धं च कोहं च माणं च मायं च लोहं च पेशं च दोसं च-इच्चेव जतो जतो आदाणाओ अप्पणो पद्दोसहेऊ ततो ततो आदाणाओ पुव्वं पडिविरते सिआ दंते दविए योसट्ठकाए समणे ति बचे एत्थ वि भिक्खू For Private And Personal Use Only

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