Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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५०
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सूयगडो २/१/-/६४५
समारंभंतं समजाणंति इह खलु गारत्धा सारंभा सपरिग्गहा संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा- जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अवित्ता वा ते सयं परिगिण्हंति अण्णेण वि परिगण्हावेति अन्नं पि परिगिण्हतं समणुजाणंति इह खलु गारत्या सारंभा सपरिग्गहा संतेगइया समणा माणा वि सारंभा सपरिग्गाहा अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे जे खलु गारत्या सारंमा सपरिग्गहा संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा एतेसिं चेव णिस्साए बंमचेरवासं वसिस्सामो कस्स णं तं हेउं जहा पुव्वं तहा अवरं जहा अवरं तहा पु अंजू एते अणुवरया अणुदट्ठिया पुणरवि तारिसगा चेच जे खलु गारत्या सारंभा सपरिग्गाहा संतेगइया समणा माहगा वि सारंभा सपरिग्गाहा दुहओ पाचाई कुच्वंति इति संखाए दोहि वि अंतेहिं अदिस्समाणो इति भिक्खू रीएज्जा से वेमि- पाईणं या पडीमं या उदीणं वा दाहिणं वा एवं से परिण्णातकम् एवं से ववेयकम्मे एवं से वियंतकारए भवइ त्ति मक्खायं 1941-14
(६४७) तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता तं जहा पुढवीकाए आउकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए से जहानामए मम असायं दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण या लेलुणा वा कयालेण वा आउडिज्झमाणस्स या हम्ममाणस्स वा तजिजमाणस्स या ताडिजमाणस्स वा परिताविज्जामाणस्स या किलामिज्जमाणस्स वा उद्दविजमाणस्स बा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारणं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि-इच्चेवं जाण सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्ये सत्ता दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा तेलुणा वा कयालेण वा आउडिज्झमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिजमाणा वा ताडिजमाणा वा परिताविजमाणा वा किलामिजमाणा या उद्दविजमाणा वा जाव लोमुक्खणणमायमचि हिंसाकारणं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति एवं नच्चा सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सब्बे सत्ता न हंतव्वा न अजावेयव्वा न परिपेतव्या न परितावेयव्वा न उद्दवेयव्वा एस धम्मे धुवे णितिए सासए समेच्च लोगं खेयण्णेहिं पवेइए एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ [विरए मुसावायाओ विरए अदत्तादाणाओ विरए मेहुणाओ] विरए परिग्गहाओ नो दंतपक्खालणेणं दंते पक्खालेज्जा नो अंजणं नो वमणं नो विरेयणं नो घूवणे नो तं परियाविएजा से भिक्खू अकिरिए अलूसए अकोहे अपाणे अमाए अलोहे उबसंते परिनिव्वुडे नो आसंसं पुरतो करेजा इमेण मे दिट्ठेण वा सुएण या मरण या विण्णाएण वा इमेण वा सुचरिय-तव-नियम- वंभचेरवासेणं इमेण वा जायामायावुत्तिएणं धम्मेणं इतो चुते पेखा देवे सिया कामभोगाण वसवत्ती सिद्धे वा अदुक्खमसु एव विसिया, एत्थ वि नो सिया से भिक्खू सद्देहिं अमुच्छिए रूवेहिं अमुच्छिए गंधेहिं अमुच्छिए रसेहिं अमुछिए फासेहिं अमुच्छिए विरए-कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरियाओ अरइरईओ मायाभोसाओ मिच्छादंसणसल्लाओ - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिविरते से भिक्खू जे इमे तसथावरा पाणा भवंति - ते नो सयं समारंभइ नो अण्णेहिं समारंभावेइ अन्ने समारंभंते वि न समणुजाण - इति से महतो आदाणाओ उवसंते उवट्ठिए पडिबिर से भिक्खु जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वात्ते नो सयं परिगिन्हइ नो अण्णेणं परिगिण्हावेइ अन्नं परिगिण्हतंपि न समणुजाणइ इति से महतो आदाणाओ उबसंते उवट्ठिए पडिविरते से भिक्खु-जं पि य इमं संपराइयं कम्पं कज्जइ-नो तं सयं करेइ नो अण्णेणं
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