Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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सूषगडो २/२/1६५८ खलु तस्स तप्पत्तियं सावजं ति आहिआइ नवमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए ति आहिए ।२६-25
(५८) अहावरे दसमे किरियट्ठाणे मित्तदोसवत्तिए ति आहिजइ- से जहानामए केइ पुरिसे माईहिं वा पिईहिं वा माईहिं वा मइणीहिं वा मज्जाहि वा घूयाहिं वा पुत्तेहिं दा सुहाहि वा सद्धिं संवसमाणे तेसिं अण्णयरंसि अहालहुगंसि अवराहसि सयमेव गरुयं दई निव्वत्तेति तं जहा-सीओदगवियडंसि वा कायं उब्दोलेत्ता भवइ उसिणोदगवियडेण वा कार्य
ओसिंचित्ता मवइ अगणिकायेणं कायं उदहित्ता भवइ जोत्तेण वा वेत्तेणं वा नेत्तेण वा तया या कसेण वा छियाए या लयाए वा अण्णयोण वा दवरएण पासाइं उद्दीलित्ता भवति दंडेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा कार्य आउट्टित्ता भवति तहप्पगारे पुरिसजाते संवसपाणे दुम्मणा भवंति पवसमाणे सुमणा मचंति तहप्पगारे पुरिसजाते दंडपासी दंडगरुए दंडपुरक्खडे अहिते इपंसि लोगंसि अहिते परंसि लोगसि संजलणे कोहणे पिट्टिमंसियावि भवइ एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावगं ति आहिअति दसमे किरियट्ठाणे मित्तदोसवत्तिए त्ति आहिए ।२७t -26
(६५९) अहावरे एक्कारसपे किरियाणे मायावत्तिए ति आहिज्जइ-जे इमे भवंति गूढायारा तमोकासिया उलूगपत्तलहूया पन्वयगुरुया ते आरिया वि संता अणारियाओ भासाओ पठंजंति अण्णाहा संत अप्पाणं अण्णहा भन्नति अन्नं पुट्ठा अन्नं वागरेति अन्न आइस्त्रियवं अण्ण आइक्खंति से जहानामए केइ परिसे अंतोसल्ले तं सल्लं नो सयं नीहरति नो अण्णेण नीहरावेति नो पडिविद्धसेति एवमेव निहवेति अविउट्ठमाणे अंतो-अंतो रियाति एवमेव माई मायं कट्ट नो आलोएइ नो पडिक्क मेड़ नो निंदइ नो गरहइ नो विउ नो विसोहेइ नो अकरणाए अब्भुट्टेइ नो अहारिहं तवोकमं पायछित्तं पडिवाइ माई अस्सि लोए पञ्चायाति माई परंसि लोए पचायाति निदइ पसंसति निचरति न नियट्टति निसिरिया दंडं छाएइ माई असमाहडसुहलेस्से यावि भवइ एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सायकं ति आहिज्जइ एसरसमे किरियट्ठाणे मायावत्तिए ति आहिए ।२८। -27
(६६०) अहावरे बारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिजइ-जे इमे भवंति आरणिया आवसाहिया गामंतिया कण्हुईरहस्सिया नो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीयसत्तेहिं ते अप्पणा सम्रामोसाई एवं विउंति-अहं न हंतव्यो अन्ने हंतव्वा अहं न अजावेयब्बो अन्ने अज्जावेपव्या अहं न परिघेतव्यो अने परिछेतचा अहं न परितावेयव्यो अन्ने परितावेयव्वा अहं न उद्दवेयव्दो अन्ने उद्दवेयव्या एवामेव ते इस्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अन्झोववण्णा जाव वासाइं चउपंचभाई छद्दसमाई अप्पयरो वा भुजयरो वा भुजित भोगभोगाइं कालसासे कालं किचा अण्णयरेसु आसुरिएसु किब्बिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति तओ विप्पमुच्चमाणा भुजो एलमूयत्ताए तमूपत्ताए जाइयत्ताए पञ्चायंति एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावलं ति आहिजंइ दुवालसमे किरियाणे लोभवत्तिए ति आहिए इचेताई दुवालस किरियट्ठाणइं दविएणं समणेणं वा माहणेणं वा सम्मं सुपरिजाणियव्वाणि भवंति ।२९(-28
(१६१) अहावरे तेरसमे किरियट्ठाणे इरियावहिए ति आहिज्जाइ इह खलु अत्तत्ताए संवुडस्स अणगारस्स इरियासमियस्स भासासमियस्स एसणासमियस्स आयणभंड-ऽमत
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