Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूयगडो २/६/-10४९ (७४७) जे यावि बीओदगभोइ भिक्खू भिक्खं विहं जायइ जीवयट्ठी ते णाइसंजोगमविप्पहाय काओवगा गंतकरा भवंति ॥६७८||-10 (७४८) इमं वं तु तुम पाउकुव्वं पावाइणो गरहसि सब्ब एव पावाइणो पुढो किट्टयंता सयं सयं दिट्ठि करेति पाउं ॥६७९||-11 (७४९) ते अण्णमण्णस्सउगरहमाणा अखंतिऊसमणा माहणार सतो य अत्यी असतो य नत्यी गरहामो दिट्टीं न गरहामो किंचि ॥६८०।-12 (७५०) न किंचि पुवेणऽभिधारयामो सदिट्ठियागं तु करेमो पाउं मग्गे इमे किट्टिए आरिएहि अनुत्तरे सप्पुरिसेहि अंजू ॥६८१-13 (७५१) उड्ढं अहे य तिरियं दिसासु तसा य जे घावर जे य पाणा भूपाभिसंकाए दुगुंछमाणे नो गरहइ बुसिमं किंचि लोए ॥६८२||-14 (७५२) आगंतगारे आरामगारे समणे उ भीते न उवेइ वासं दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊणातिरित्ता य लवालवा य ।।६८३11-15 (७५३) मेहाविणो सिक्खियं बुद्धिमंता सुत्तेहिं अत्येहि य णिच्छयण्णू पुंच्छिसु मा णे अणगार अण्णे इति संकमाणो न उवेइ तत्थ ॥६८४]1-18 (७५४) नाकामकिच्चा न य बालकिचा रायाभियोगेण कुओ भएणं वियामरेज्जा पसिणं न वा वि सकामकिच्चैणिह आरियाणं ॥६८५||-17 (७५५) गंता व तत्था अदुवा अगंता वियागरेज्जा समियासुपण्णे अणारिया दंसणजो परिता इति संकमाणो न उवेइ तत्य ॥६८६!|-18 (७५६) पण्णं जहा वणिए उदयी आयस्स हेउं पगरेइ संगं . तोवमे समणे नायपुत्ते इच्छेव मे होइ मई वियका ॥६८७१-19 (७५७) नवं न कुजा विहुणे पुराणं चिचा ऽमई ताइ य साह एवं एतावता बंभवति त्ति वुत्ते तस्सोदयट्ठी समणे ति वेपि ॥६८८3-20 (७५८) समारभंते वणिया भूयगामं परिगहं चेव ममायपाणा ते णाइसंजोगमविप्पहाय आयस्स हेउं पगरेति संगं ॥६८९॥-21 (७५९) वित्तेसिणो मेहुणसंपगाढा ते मोयणट्ठा वणिया वयंति । ययं तु कामेहि अन्झोववण्णा अणारिया पेमरसेसु गिद्धा ॥६९०।-22 (७६०) आरंभगं चेव परिग्गहं च अविउस्सिया णिस्सिय आयदंडा तेसि च से उदए जं वयासी घउरंतणंताय दुहाय नेह ॥६९१||-23 (७६१) णेगंति णचंति तओदए से वयंति ते दो वि गुणोदयम्मि से उदए साइमणंतपते तमुदयं साहयइ ताइ णाई (७६२) अहिंसयं सव्वपयाणुकंपी धम्मे ठियं कम्मविवेगहेउं तमायदंडेहि समायरंता अबोहिए ते पडिरूवमेयं ॥६९३।!-25 (७६३) पिण्णागपिंडीमवि विद्ध सूले केई एएजा पुरिसे इमे ति अलाउयं वा वि कुमारग त्ति स लिप्पई पाणिवहेण अहं ॥६९४॥-26 ॥६९२||-24 For Private And Personal Use Only

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