Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ सूयगडो २/२/- /६६४ महयाहय-नट्ट- गीय-वाइय-तंती- तल-ताल- -तुडिय घण-मुइंग-पडुप्पवाइय-रवेणं उरालाई मागुस्सागाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरए तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच जणा अवुत्ता चैव अब्भु ट्ठेति-भण देवाणुप्पिया किं करेमो किं आहरेमो किं उवणेमो किं उवट्ठावेमो किं मे हियइच्छियं किं मे आसगस्स सयइ तमेव पासित्ता अणारिया एवं वयंतिदेवे खलु अयं पुरिसे देवसिणाए खलु अयं पुरिसे देवजीवणिजे खलु अयं पुरिसे अण्णे विद्यणं उवजीवंति तमेव पासित्ता आरिया वयंति-अभिक्कं तकूरकम्मे खलु अयं पुरिसे अइधूए आइआयरक्खे दाहिणगामिए नेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लहबोहिए यावि भविस्साइ इतस्स ठाणस्स उट्ठित्ता वेगे अभिगिज्झति अणुट्ठित्ता वेगे अभिगिज्झति अभिजाउ अभिगति एस ठाणे अणारिए अकेवले अप्पडिपुण्णे अणेयाउए असंसुद्धे असलगतेण असिद्धिमागे अमुत्तिमग्गे अनिव्वाणमग्गे अनिज्जाणणे असव्वदुक्खपहीण- मग्गे एगंतमिच्छे असाहू एस खलु पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिए |३३| -92 (६६५) अहावरे दोस्त ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिजइ-इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीर्ण वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति तं जहा आरिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे नीयागोया वेगे कायमंता वेगे हस्समंता वेगे सुवण्णा वेगे दुवण्णा वेगे सुरूवा वेगे दुरूवा वेगे तेसिं च णं खेत्तवत्थूणि परिग्गहियाई भवंति [तं जहा अप्पवरा वा भुजयरा वा तेसिं च णं जणजाणवयाइं परिग्गहियाई भवंति तं जहा- अप्पयरा वा भुजयरा वा तहप्पगारेहिं कुलेहिं आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समुट्ठिया सतो या वि एगे नायओ य उवगरणं च विष्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया असतो वा वि एगे नावओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया जे ते सतो वा असतो वा नायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिया पुव्यमेव तेहिं नातं भवति इह खलु पुरिसे अण्णमण्णं ममट्ठाए एवं विष्पडिवेदेति तं जहा खेत्तं मे वत्थू मे हिरण्णं मे सुवणं मे धणं मे धणं मे कंसं मे दूसं मे विपुल धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय संख-सिल-प्पवालरत्तरयण-संत-सार-सावतेचं मे सद्दा मे रुवा मे गंधा मे रसा मे फासा मे एते खलु मे कामभोगा अहमवि एतेसिं से मेहादी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा - इह खलु मम अण्णतरे दुक्खे रोगातं समुपज्जा अणिट्ठे अकंते अप्पिए असुमे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे नो सुहे से हंता भयंतारो कामभोगा मम अण्णतरं दुक्खं रोगायकं परियाइयह-अणिट्ठ अकंतं अप्पियं असुमं अमणुष्णं अमणामं दुक्खं नो सुहं माऽहं दुक्खामि वा सोयापि चा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ पडिमोयह- अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुभाओ अमणुण्णाओ अपणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ एवमेव नो लद्धपुव्वं भवति इह खलु कामभोगा नो ताणाए वा नो सरणाए वा पुरिसे वा एगया पुचि कामभोगे विप्पजहइ कामभोगा वा एगया पुवि पुरिसं विष्पजर्हति अन्ने खलु कामभोगा अन्नो अहमति से किमंग पुण वयं अन्नमण्णेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो इति संखाए णं वयं कामभोगे विप्पजहिस्सामो से मेहावी जाणेजा-वाहिरगमेवं इणमेव उवणीयतरगं तं जहा माता मे पिता मे भाया मे भगिणी मे भज्जा मे पुत्ता मे नत्ता मेधया मे पेसा मे सहा मे सुही मे सयणसंगंथसंधुया मे एते खलु मम नायओ अहमवि एएसिं For Private And Personal Use Only


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