Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयक्ांघो -२, अजापणं-१ मि वा सोयामि वा जूरामि वा तिप्पामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ एवमेव नो लद्धपुव्वं भवति इह खलु कामभोगा नो ताणाए वा नो सरणाए वा पुरिसे वा एगया पुवि कामभोगे विप्पजहइ कामभोगावा एगया पुव्वि पुरिसं विष्पजहंति अन्ने खलु कामभोगा अन्नो अहमंसि से किमंग पुण वयं अण्णमण्णेहिं कामभोगेहिं मुच्छामो इति संखाए णं वयं कामभोगे विष्पजहिस्सामो से मेहावी जाणेज्जा - बाहिरगमेयं इणमेव उवणीयतरणं तं जहा माता मे पिता मे पाया मे मागिणी मेजा मे पुत्ता मे णत्ता मे धूवा मे पेसा मे सहा मे सुही मे सयणसंगंधसंयुया मे एते खलु मम नायओ अहपवि एएसिं से मेहावी पुव्वमेव अप्पणा एवं समभिजाणेज्जा -इह खलु ममं अण्णय दुक्खे रोगातं समुप्पज्जेज्जा- अणिट्ठे अकंते अपिए असुमे अमणुण्णे अनणाम दुक्खे नो सुहे से हंता भयंतारो नामओ इमं मम अण्णयरं दुक्खं रोगातंक परिया-इयहअणिट्ठ [ अकंतं अप्पियं असुमं अमणुष्णं अमणामं दुक्खं] नो सुहं माऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जूरामि वा तिष्यामि वा पीडामि वा परितप्पामि वा इमाओ मे अण्णतराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोयह अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुमाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ एवमेवं नो लद्धपुव्वं भवइ तेसिं वा विभयंताराणं मम नाययाणं अण्णयरे दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा अणिट्ठे [ अकंते अप्पिए असुभे अमणुण्णे अमणामे दुक्खे] नो सुहे से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं नाययाणं इमं अण्णतरं दुक्खं रोगातंकं परिया-इयामि अणि अकंतं अप्पियं असुभं अमणुष्णं अमणाभं दुक्खं नो सुहं मा मे दुक्खंतु वा सोयंतु वा जूरंतु वा तिप्पंतु वा पीडंतु वा परितप्पंतु वा इमाओ नं अण्णयराओ दुक्खाओ रोगातंकाओ परिमोएमि-अणिट्ठाओ अकंताओ अप्पियाओ असुमाओ अमणुण्णाओ अमणामाओ दुक्खाओ नो सुहाओ एवमेव नो लद्धपुच्वं भवति अण्णस्स दुक्खं अण्णो नो परियाइयइ अण्णेण कतं अण्णो नो पडिसंवेदेइ पत्तेयं जायइ पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेयं उब्वज पत्तेयं झंजा पत्तेयं सण्णा पत्तेयं मण्णा पत्तेयं विष्णू पत्तेयं वेदणा इति खलु नातिसंजोगा नो ताणाए वा नो सरणाए वा पुसिरे या एगया पुद्धिं नाइसंजोगे विप्पजहइ नाइसंजोगा या एगया पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति अण्णे खलू नातिसंजोगा अण्णो अहमति से किमंग पुण वयं अण्णमण्मेहिं नाइसंजोगेहिं मुच्छामो इति संखाए णं वयं नातिसंजोगे विप्पजहिस्सामो से मेहावी जाणेज्जा- बाहिरगमेयं इणमेव उवणीयतरगं तं जहाहत्या में पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीसं मे आउं मे बलं मे वण्णो मे तया मे छाया मे सोयं मे चक्खु मे घाण मे जिटमा मे फासा मे ममाति वयाओ परिजूरइ तं जहा आऊओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ चक्खूओ घाणाओ जियाओ फासाओ सुसंधिता संधी विसंधीभवति वलितरंगे गाए भवति किव्हा केसा पलिया भवंति जं पि य इमं सरीरगं उरालं आहारोचचियं एवं पिय मे अणुपुब्वेणं विष्पजहियव्वं भविस्सति एयं संखाए से भिक्खु भिक्खायरियाए समुट्ठिए दुहओ लोगं जाणेज्जा तं जहा जीवा चेव अजीवा घेव तसा चेव धावरा चैव ।१४। - 13 ४९ ( ६४६ ) इह खलु गारत्या सारंभा सपरिग्गहा संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा- जे इमे तसा यायरा पाणा ते सयं समारंभंति अण्णेण वि समारंभावेति अन्नं पि For Private And Personal Use Only

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