Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुयक्लंघो-१, अमयणं-७, (४०२) कम्मं परिष्णाय दर्गसि धीरे वियडेण जीवेज य आदिमोक्खं से वीयकंदाइ अमुंजमाणे विरए सिणाणाइसु इत्थियासु ॥४०२||-22 (४०३) जे मायरं च पियरं च हिच्चा गारं तहा पुत्तपसुंघणंच कूलाई जे धावति साउगाई अहाह से सामणियस्स दूरे ॥४०३।।-23 (४०४) कुलाई जे पावति साउगाई आधाइ धमं उदराणुगिद्धे से आरियाणं गुणाणं सतसे जे लावएज्जा असणस्स हेउं ॥४०४||-24 (४०५) निखम्म दीणे परभोयणम्मि मुहमंगलिओदरियं पगिद्धे नीवारगिद्धे व महावराहे अदूर एवेहिइ घातमेव ॥४०५||-25 (४०६) अण्णस्स पाणस्सिहलोइयस्स अणुप्पियं भासति सेवमाणे पासत्ययं चेव कुसीलयं च निस्सारए होइ जहा पुलाए ॥४०६।।-26 {४०७) अण्णायपिंडेणऽहियासएशा नो पूयणं तवसा आवहेजा । सद्देहि स्वेहि असजमाणे सव्वेहिं कामेहि विणीय गेहिं ॥४०७1-27 (४०८) सव्वाई संगाई अइच धीरे सव्वाइं दुक्खाई तितिक्खमाणे अखिले अगिद्धे अणिएयचारी अभयंकरे भिक्खु अनाविलप्पा।।४०८||-28 (४०९) भारस्स जाता मुणि भुंजएजा कंखेज्ज पावस्स विवेग भिक्खू दुखेण पुढे धुयमाइएज्जा संगामसीसे व परं दमेजा ॥४०९।।-29 (४१०) अवि हप्ममाणे फलगावतही समागमं कंखइ अंतगस्स निद्धय कम्मं न पवंचुवेइ अक्खक्खए वा सगडं ति वेमि ॥४१०||-30 • सत्तसं अन्झयणं समतं . अट्ठमं अज्झयणं-वीरियं| {४११) दुहा वेयं सुयक्खायं वीरियं ति पवुच्चई किष्णु वीरस्स वीरितं केण वीरो त्ति वुच्चति 1४११11-1 (४१२) कम्ममेव पवेदेति अकम्मं वा वि सुव्वया एतेहिं दोहिं ठाणेहिं जेहिं दीसंति मच्चिया ४१२||-2 (४१३) पमायं कम्ममाहंसु अप्पमायं तहावरं तभावादेसओ वा वि बालं पंडियमेव वा ॥४१३||-3 (४१४) सत्यमेगे सुसिक्खंति अतिवाताय पाणिणं एगे मंते अहिजंति पाणभूयविहेडियो (४१५) माइणो कट्ट मायाओ कामभोगे समारभे हंता छेता पगतित्ता आय-सायाणुगामिणो ||४१५11-5 (४१६) मणसा वयसा चेव कायसा चैव अंतसो आरतो परतो वा वि दुहा वि य असंजता ।।४१६||-6 (४१७) वेराई कुब्बती वेरी ततो वेरेहि रज्जती पावोवगा य आरंभा दुक्खफासा प अंतसो (४१८) संपरायं नियच्छंति अत्तदुक्कडकारिणो । रागदोसस्सिया बाला पावं कुव्वंति ते बहुं ॥४१८||-8 ॥४१४||-4 ||४१७11-7 For Private And Personal Use Only


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