Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||२७१||-25 सुयक्खंधो-1, अग्रपं-४, उद्देतो-२ {२६६) उसिया वि इत्थिपोसेसु पुरिसा इत्यिवेयखेत्तण्णा पण्णासमण्णिया वेगे नारीणं वसं उवकसंति 1२६॥-20 १२६७) अवि हत्थपायछेयाए अदुवा वद्धमंसउकते । अवि तेयसाभितावणाई तछिय खारसिंचणाई च ॥२६७||-21 (२६८) अदु कण्णणासियाछेज्न कंठच्छेयणं तितिक्खंति इति एत्य पाव-संतत्ता न य वेति पुणो न काहिति ॥२६८॥-22 (२६९) सुयमेयमेवमेगेसि इत्यीवेदे वि हु सुयक्खायं एवं पि ता वइत्ताणं अदुवा कम्मुणा अवकरेति ॥२६९।1-23 (२७०) अपणं मणेण चिंतेति अण्णं वायाए कम्मुणा अग्णं तम्हा ण सहहे भिक्खू बहुमायाओ इत्यिो नच्चा ॥२७०।-24 (२७१) जुवती समर्ण बूया चित्तवत्थालंकारविभूसिवा विरया चरिस्सहं रुक्खं धम्माइक्ख णे भयंतारो (२७२) अदु सावियापवाएणं अहंगं साहम्पिणी य तुमं ति जउकुम्भे जहा उदनोई संवासे विऊ विसीदेजा। ॥२७२||-26 (२७३) जउकुम्भे जोइसुवगूढे आसुमितत्ते नासमुवयाइ एवित्थियाहिं अणगारा संवागसेण नासमुवयंति ॥२७३३1-27 (२७४) कुवंति पावगं कम्मं पुट्ठा वेगेवमासु नो हं करेपि पावं ति अंकेसाइणी ममेस त्ति ॥२७४||-28 (२७५) बालस्स मंदयं वीयं जं च कडं अवजाणई मुजो दुगुणं करेइ से पावं पूयणकामो विसण्णेसी ||२७५||-29 (२७६) संलोकणिजमणगारं आयगर्य निमंतणेणाहंसु वत्थं वा ताइ पायं वा अण्णं पाणगं पडिग्गाहे ||२७६ ||-30 (२७७) नीवारमेवं बुन्झेजा नो इच्छे अगारमागंतुं बद्ध चिसयपासेहिं मोहमावज्जइ पुणो मंदे - ति चेमि ॥२७७॥-31 .चउत्ये अजपणे पदमो उद्देसो सपतो. ___ -बीओ उद्देसो:(२७८) ओए सया न रजेजा भोगकामी पुणो विरजेजा मोगे समणाणं सुणेहा जह भुंजंति मिक्खुणो एगे ॥२७८॥-1 (२७९) अह तं तु भेयमावण्णं मुच्छियं भिक्खु काममइवर्ट पलिभिंदियाण तो पच्छा पादुट्ट मुद्धि पहणति । ॥२७९||-2 (२८०) जइ केसियाए मएभिक्खु नो विहरे सहणमित्थीए केसे वि अहं लुचिस्सं णण्णत्य मए चरेज़ासि ॥२८०||-3 (२८१) अह णं से होइ उवलद्धे तो पेसेति तहाभूएहिं अलाउच्छेयं पेहेहिं वग्गुफलाइं आहराहि ति ॥२८१11-4 (२८२) दारूणि सागपागाए पनोओ वा भविस्सई राओ पायाणि य मे रयावेहि एहि य ता मे पट्ठि उपद्दे ॥२८२।।-5 For Private And Personal Use Only

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