Book Title: Agam 02 Suyagado Angsutt 02 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥॥२३२॥-8 ॥२३६11-12 सुयक्वंधो-१, अझयणं-३, उद्देसो-४ (२३२) पाणाइवाए वटुंता मुसावाए असंजया अदिनादाणे वटुंता मेहुणे य परिग्गहे (२३३) एवमेगे उ पासस्था पण्णवेति अणारिया इत्यवसं गया बाला जिणसासणपरंमुहा ॥२३३11-9 (२३४) जहा गंडं पिलागं वा परिपीलेता मुहत्तगं एवं विण्णवणित्थीसु दोसो तत्थ कओ सिया ||२३४1-10 (२३५) जहा मंधादए नाम थिपियं पियति दगं एवं विष्णवणिस्थीसु दोसो तत्य कओ सिया 11२३५||-11 (२३६) जहा विहंगमा पिंगा थिपियं पियति दगं एवं विण्णवणिधीसु दोसो तत्य कओ सिया (२३७) एवमेगे उ पासत्या पिच्छादिट्ठी अणारिया अज्झववण्णा कामेहिं पूयणा इव तरुणए ॥२३७||-13 (२३८) अणागयमपस्संता पधुप्पण्णगवेसगा ते पच्छा परितप्पंति झीणे आउम्मि जोव्यणे ||२३८11-14 (२३९) जेहिं काले परकंत न पच्छा परितप्पए ते धीरा बंधणुम्मुक्का नावकंखंति जीवियं ॥२३९।।-15 (२४०) जहा नई वेयरणी दुत्तरा इह सम्मता एवं लोगंसि नारीओ दुतरा अपईमया ॥२४०11-16 (२४१) जेहिं नारीण संजोगा प्रयणा पिठओ कया प्सबमेयं निराकिचा ते ठिया सुसमाहीए (२४२) एए ओधं तरिस्संति समुदं व ववहारिणो जस्थ पाणा विसण्णासी किन्चंती सयकम्मुणा (२४३) तं च भिक्खू परिण्णाय सुब्बए समिए चरे मुसावायं विवजेज्जा ऽदिण्णादाणं च योसिरे ||२४३।1-19 (२४४) उड्ढमहे तिरियं वा जे केई तसथावरा सव्वत्य विरतिं कुञा संति निव्वाणमाहियं ॥२४४||-20 (२४५) इमं च धम्ममायाय कासवेण पवेइयं । कुजा भिक्खू गिलाणस्स अगिलाए समाहिए ॥२४५||-21 (२४६) संखाय पेसलं धम्म दिट्टिमं परिनिव्वुडे उवसग्गे नियामित्ता आमोक्खाए परिव्वएनासि -त्ति वेमि ॥२४६।-22 . तइए अग्नपणे चऊत्यो उद्देसो सम्पत्तो • तइयं अग्झयणं सम्मतं . चउत्थं अज्झयणं-इस्थिपरिणा ___ -- पठमो उद्देसो :(२४७) जे मायरं घ पियरं च विप्पजहाय पञ्चसंजोगं एगे सहिए चरिस्सापि आरतमेहुणो विवितेसी ॥२४७||-1 ॥२४१11-17 ॥२४२||-18 22 For Private And Personal Use Only

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